जब से केंद्र सरकार ने रियासत जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती को पत्थरबाजी के आरोपों में फंसे युवाओं के खिलाफ चल रहे मुक़दमे वापिस लेने की बात कही है उसने सत्ता के गलियारों में एक बार फिर से यह बहस छेड़ दी है की क्या सही में पत्थरबाजी कर रहे युवा कश्मीर में शांति के दूत बन सकते हैं !
क्या केंद्र द्वारा भेजे गए वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के नवीनतम प्रयासों के बल पे ऐसा माहौल तैयार किया जा सकता है जिसमें शांति प्रक्रिया को आगे बढाया जा सके और राज्य के तीनों हिस्सों को एक साथ जोड़ कर कश्मीर मसले पे सार्थक बहस की जाए !
कश्मीर में बड़ी संख्या में युवा सोशल मीडिया के जरिये भारत के खिलाफ जेहर उगलने का काम करते हैं ! उनपे लगाम कसना तो दूर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई !
जम्मू-कश्मीर मुद्दे के मामले में केंद्र द्वारा नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा की सिफारिश के बाद केंद्र ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से इस मामलें में विचार करने को कहा था जिसके बाद महबूबा मुफ्ती ने इस पर अमल करते हुए घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में पहली बार शामिल पाए गए युवाओं के खिलाफ एफआईआर को वापस लेने का एलान किया।
सरकार ने यह फैसला बड़ा सोच समन्झ कर लिया और इस बात की घोषणा ऐसे वक़्त में हुई है जब केंद्र के वार्ताकार रियासत के दुसरे दौरे की तयारी कर रहे थे ! उन्होंने अपनी पहली यात्रा की रिपोर्ट और सुझाव में ऐसे कदम उठाने की भी सिफारिश की थी जिस से समाज के सब वर्गों के साथ एक लम्बी बातचीत का माहोल तयार किया जा सके !
अपनी 4 दिन के यात्रा के दौरान दिनेश्वर शर्मा इस बार जम्मू में कश्मीरी विस्थापित परिवारों के लोगों से और पश्चमी पाकिस्तान से आये रिफ्यूजी और बॉर्डर के निकट रहने वालों से भी मिलेंगे और लम्बे समय से लंबित मामलों पे चर्चा करेंगे !
जम्मू से शर्मा सीधे श्रीनगर रवाना होंगे और दक्षिण कश्मीर का दौरा करेंगे ! अपनी यात्रा के दौरान उनका प्रयास रहेगा की वो किसी भी गुट को नाराज़ न करें और बातचीत के रस्ते उनका दिल जीतने का प्रयास करेंगे !
दक्षिण कश्मीर में दिनेश्वर शर्मा का जाना अपने आप में एक महतवपूर्ण घटना है !
बुरहान वाणी की मौत के बाद इसी इलाके में सबसे ज्यादा हिंसा हुई थी जिसके बाद एक लम्बे समय तक वहां के हालात बिगड़ गए थे !
एक कृत्रिम सुझाव ?
पत्थरबाज युवाओं के खिलाफ केस वापिस लेने की बात कहने को तो एक कृत्रिम सुझाव नज़र आता है क्यूंकि कश्मीर घाटी में कट्टरपंथी नौजवानों की कमी नहीं है ! कश्मीर में बड़ी संख्या में युवा सोशल मीडिया के जरिये भारत के खिलाफ जेहर उगलने का काम करते हैं ! उनपे लगाम कसना तो दूर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई ! सिर्फ कुछ गिने चुने मामलो में पुलिस ने उनकी धर पकड़ की और मामला रफा दफा हो गया ! हाँ इतना जरूर है पुलिस और सुरक्षा एजेंसीज की नज़र इन युवाओं पे लगातार रहती है ताकि वो किसी गलत कम को अंजाम न दे !
इन नौजवानों की गिनती उन्ही लोगों में की जाती है जो आए दिन कश्मीर की गलियों में पत्थरबाजी करते हैं और ISIS के झंडे चढ़ाते हैं , आज़ादी के नारे बुलंद करते हैं और आंतंकी के जनाज़े में शामिल हो कर उनको चुमते हैं !
इस से पहले भी रियासत की सरकारों ने ऐसी ही कोशिशे की है लेकिन उनको कामयाबी हासिल नहीं हुई !
2010 में भी जब उमर अब्दुल्ला की सरकार ने पत्थरबाजी में लिप्त युवाओं को माफ़ी देने का एलान किया था उन्होंने उन परिवारों से इस बात की गारंटी ली थी की दुबारा उनके बचचे पत्थरबाजी में शामिल नहीं होंगे !
सरकारी आंकड़ों के अनुसार कुछ समय के लिए पत्थरबाजी की घटनाओं में कमी आयी लेकिन यह पत्थरबाजी करने वाले एक बार फिर से ज़मीन पे उतर आये ! जब जब सरकार ने इनको दबाने का कम किया यह फिर ताक़तवर बन कर वापिस आ गए और कश्मीर घटी में शांति भंग करने की साज़िश रचने लगे !
कश्मीर घाटी में हमेश एस बात पे बहस छिड़ी रहती है आखिर पत्थरबाजी करने वालों को किस की शह है और कौन इनको प्रायोजित करता है !
पत्थरबाजी को कौन प्रायोजित कर रहा है ! सियासी दल एक दुसरे पे ऊँगली उठाते रहते हैं
कश्मीर घाटी में हमेश एस बात पे बहस छिड़ी रहती है आखिर पत्थरबाजी करने वालों को किस की शह है और कौन इनको प्रायोजित करता है ! अप्रैल २०१७ में सीधे सीधे उमर अब्दुल्ला पे निशाना साधते हुए इस बात को सदन के पटल से कहा था की 2010 में भड़की हिंसा के समय यदि सरकार ने कारगर कदम उठाए होते तो शायद कश्मीरी युवाओं के अन्दर धधक रहा लावा बुरहान वाणी की मौत के बाद इस तरह नहीं फूटता !
महबूबा मुफ़्ती ने उमर पे उस समय निशाना साधा जब डॉ फारूक अब्दुल्ला ने यह इलज़ाम लगाया की मुफ़्ती की सरकार पत्थरबाजी करवा रही है और इसे प्रायोजित भी करवा रही है !
इस समय राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी पत्थरबाजी के पीछे का सच सामने लाने के लिए हवाला के जरिये आने वाले पैसों की जांच में जुड़ा हुआ है और लगातार छापेमारी कर के इस से जुड़ी हर कड़ी की जांच परताल कर रहा है ! जिस समय से यह जांच शुरू हुई है अलगाववादी सदमे में हैं और अपनी साख बचाने में लगे हुए हैं ! प्राप्त जानकारी के अनुसार बहुत से राज बेपर्दा हुए हैं और बहुत से चेहरे बेनकाब हुए हैं !
साथ ही कश्मीर मामलो से जुड़े जानकार मानते हैं पत्थरबाजी कर रहे युवाओं के ऊपर से केस वापिस लेकर सरकार बातचीत आगे ले जाने के लिए एक सकारात्मक पहल करना चाहती है और इअसा कर के यह सन्देश भी देना चाहती है की शांति की रह में सरकार कोई रोड़ा नहीं अटकाना चाहती !
उमर अब्दुल्ला ने अगस्त २०११ में पत्थरबाजों को ईद का तोहफा देते हुए उनके लिए आम माफी का ऐलान किया था । इसका फायदा करीब 1200 नौजवानों को मिला था ।
महबूबा मुफ़्ती सरकार ने मई 2016 में भी इस प्रक्रिया को शुरू किया था लेकिन दुर्भाग्यवश उस वर्ष में अशांति और कुछ कानूनी प्रक्रिया के चलते यह कार्य रुक गया था । महबूबा ने कहा कि ये सारे युवा उनके परिवारों के लिए आशा की किरण है।
महबूबा मुफ़्ती का मानना है उनकी सरकार का यह कदम उन्हें अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने का अवसर प्रदान करने में सहायक साबित होगा।
बता दें कि मुख्यमंत्री द्वारा किए गए इस फैसले से घाटी के करीब 4500 युवाओं को राहत मिलेगी। आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में पत्थरबाजी की घटनाओं में जबरदस्त इजाफा हुआ था। बुरहान की मौत के बाद घाटी में भड़की हिंसा में पत्थरबाजी के करीब 11500 केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 4500 ऐसे किशोर थे जो कि पहली बार पत्थरबाजी में शामिल हुए थे।
इस से पहले उमर अब्दुल्ला ने अगस्त २०११ में पत्थरबाजों को ईद का तोहफा देते हुए उनके लिए आम माफी का ऐलान किया था । इसका फायदा करीब 1200 नौजवानों को मिला था ।
उमर ने इस बात का धयान रखा था की माफ़ी सिर्फ वही युवा हासिल कर सकते हैं जिनके खिलाफ बीते एक साल से अलग-अलग थानों में पत्थरबाजी के मामले दर्ज हुए थे और वे फरार थे । ऐसे लड़कों के मां-बाप से कहा गया था की वो अदालत से उनकी जमानत लें और इसके बाद आम माफी का लाभ देने का आग्रह करें।
उस समय प्रदर्शनकारियों ने 76 सरकारी भवनों को जलाया था, जबकि 38 सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया था। पथराव करने वालों ने 16 निजी इमारतों को आग लगाने के अलावा 18 और इमारतों को नुकसान पहुंचाया था। इन लोगों ने 37 सरकारी वाहनों समेत 62 गाड़ियों को जलाया था और 160 गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया था।
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