क्या प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत बुरी थी ?

इसी अध्ययन के कुछ आंकड़ो को इस लेख में नीचे प्रस्तुत किया गया है

भारत में महिलाओं की स्थिति
भारत में महिलाओं की स्थिति

मैंने इस विषय पर अध्ययन करने का निर्णय किया तथा प्राचीन काल से महिलाओं की स्थिति का आंकलन करने का प्रयास किया |

आज देश में विदेशी पैसे से चलने वाले एन.जी.ओ. के द्वारा कई फेमिनिस्म के आन्दोलन चल रहे हैं , जिनका उद्देश्य महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने की जगह पश्चिमी बाजारवाद को बढ़ावा देना, भारतीय और हिन्दू संस्कृति को अपमानित करना तथा  पुरुषो और महिलाओं के बीच वैमस्य का भाव पैदा करना है | इसमें काम करने वाले लोग अक्सर भारत को पित्रसत्तात्मक , महिला विरोधी देश इत्यादि बताने का प्रयास करते रहते हैं | इससे ना सिर्फ युवाओं के मन में अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति नफरत पैदा होती है बल्कि दुनियाभर में भी भारत की बदनामी होती है | अतः मैंने इस विषय पर अध्ययन करने का निर्णय किया तथा प्राचीन काल से महिलाओं की स्थिति का आंकलन करने का प्रयास किया | इसी अध्ययन के कुछ आंकड़ो को इस लेख में नीचे प्रस्तुत किया गया है :

वैसे तो सबसे पहले शंकर के साथ पार्वती, विष्णु के साथ लक्ष्मी तथा ब्रह्मा के साथ सरस्वती आदि देवताओं के वर्णन भारतीय साहित्य में हैं जिनमे पत्नियाँ पति के बराबर स्थान पर हैं या कई जगह उनसे ऊँचे स्थान पर भी विराजमान हैं |

प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति :

भारत दुनिया का सबसे प्राचीन देश है तथा भारत का इतिहास भी दुनिया में सबसे प्राचीन इतिहास माना जाता है | वैसे तो सबसे पहले शंकर के साथ पार्वती, विष्णु के साथ लक्ष्मी तथा ब्रह्मा के साथ सरस्वती आदि देवताओं के वर्णन भारतीय साहित्य में हैं जिनमे पत्नियाँ पति के बराबर स्थान पर हैं या कई जगह उनसे ऊँचे स्थान पर भी विराजमान हैं  | मगर इनकी बात करने से लोग कहेगे के यह सब भगवान इत्यादि तो मिथ्या है | मगर इसे यदि मिथ्या भी माना जाए तो मिथ्या में भी महिलाओं की स्थिति खराब नहीं थी , इस बात को यहीं छोड़कर आगे की बात पर आते हैं जो इतिहास के रूप में लोगों को ज्ञात है | अतः वैदिक काल से ही महिलाओं की स्थिति का अध्ययन करना उचित होगा | सबसे पहले बात करते हैं ऋग वेद की जो सबसे प्राचीन है | ऋगवेद के अन्दर लोपमुद्रा नामक महिला का वर्णन आता है | यह विदर्भ की राजकुमारी थीं |[i]लोपमुद्रा को उनके पिता ने बहुत पढाया, लिखाया तथा विद्वान बनाया एवं उन्हें सभी शास्त्रों का ज्ञान दिया | इन्होने अपनी मर्जी से ऋषि अगस्त्य से विवाह किया | यही नहीं इन्होने बाद में ऋषि अगस्त्य को गृहस्थ जीवन का मोल भी समझाया | क्या ऐसी महिला जो पिता तथा पति दोनों के साथ अपनी मर्जी से रही तथा पढ़ी लिखी एवं विवाह भी अपनी मर्जी से किया दबी कुचली कहलाई जायेगी , यह सोचने योग्य प्रश्न है ? पर पश्चिमी नव नारीवादी आन्दोलनों से निकले लोग यही कहते हैं के भारत में महिलाओ को शुरू से दबाया गया है |

दूसरा उदाहरण ऋगवेद से ही मैत्रेयी का आता है | इन्होने भी शास्त्रों का अद्भुत ज्ञान अर्जित किया एवं याग्यवलक्य ऋषि से इनकी शादी हुई | जब ऋषि एक दिन सब कुछ त्याग कर अपना सारा सामान इन्हें देकर वन में तपस्या को जाने लगे , तब मैत्रेयी ने उनसे कहा के – जरुर वन में तपस्या में ऐसा कुछ है जो इन सभी वस्तुओं से अधिक कीमती है अतः मुझे यह सब नहीं बल्कि वही चीज चाहिए जो आप वन में प्राप्त करने जा रहे हैं | यह सुनकर याज्ञवल्क्य ऋषि को बहुत ख़ुशी हुई तथा फिर दोनों पति पत्नी ने साथ में जाकर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया |

प्राचीन भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता था तथा उनके पढने लिखने , बाहर जाने या विवाह करने पर कोई रोक टोक नहीं थी |

इसी तरह ऋगवेद में गार्गी का वर्णन आता है जिन्होंने ना सिर्फ शास्त्रों, संस्कृत एवं अन्य ज्ञान प्राप्त किये बल्कि यह शास्त्रार्थ की कला में भी पूरी तरह निपुण थीं | इनके ऊपर भी वेद में ऋचाये रची गयी हैं |

इसी तरह घोषा आदि महिलाओं का वर्णन वेदों में है | जिससे यह ज्ञात होता है के प्राचीन भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता था तथा उनके पढने लिखने , बाहर जाने या विवाह करने पर कोई रोक टोक नहीं थी |

प्राचीन पुस्तकों में महिलाओं की स्थिति :

रामायण नामक ग्रन्थ जो की मान्यता अनुसार डाकू से संत बने एक शुद्र वर्ण के ऋषि वाल्मीकि ने लिखा है तथा सभी जाती और वर्ण के लोग उनका आदर और सम्मान करते हैं | इस ग्रन्थ में सर्वप्रथम श्री राम की दूसरी माता कैकयी का वर्णन आता है | यह राजा दशरथ की पत्नी थीं तथा राक्षसों के साथ युद्ध में यह राजा दशरथ के साथ राक्षसों से लड़ी थी | यही नहीं राजा दशरथ के रथ का पहिया टूट जाने पर इन्होने अपने हाथ की ऊँगली काट कर उसमे लगा दी थी , जिससे राजा दशरथ युद्ध जीत सके थे | इसी समय राजा दशरथ ने इन्हें एक वरदान मांगने को कहा था जो उन्होंने बाद में मंथरा के भड़काने के कारण श्री राम को वन भेजने के रूप में माँगा |[ii] क्या कैकई जो युद्ध लडती हैं , पति तथा राजा को अपने निर्णय के आगे झुका लेती हैं , युवराज को वन भेज देती हैं , वो कही से भी कमजोर नारी का प्रतीक नजर आती हैं ???? यह एक सोचने योग्य बात है | मगर बेचारे अंग्रेजी साहित्यकार और उनके नकलची भारतीय नारीवादी वामपंथी इन तथ्यों को क्यों देखेंगे |

इसी तरह महाभारत साहित्य में भी एक  द्रोपदी  के अपमान पर सौ कौरवो का नाश कर दिया जाता है | कुंती तथा गांधारी भी जहाँ समानता से पति के सम्मुख बैठती एवं बातें करती हैं | जहाँ सुभद्रा और रुक्मणि अपने वर स्वयं चुनती हैं |[iii] उन ग्रंथों में यदि किसी को नारी पर अत्याचार दिखाई देता है , तो यह उसका तथ्यों से आँखे मूंदना नहीं तो और क्या कहा जाएगा |

इसी तरह माता पार्वती के हठ के कारण भगवान् शंकर को गणेश जी को जीवित करना पड़ता  है एवं एक कथा के अनुसार माता काली को शांत करने के लिए स्वयं उनके पति भगवान् शिव को उनके चरणों के नीचे लेटना पड़ता  है | जिससे उनका गुस्सा शांत होता है | यही नहीं हर देवता के नाम के पहले स्त्री का नाम आता है जैसे राधा-कृष्ण, सीता-राम, उमा-शंकर, जानकी-वल्लभ, लक्ष्मी-नारायण आदि क्या यह सब भारत में महिलाओं की बुरी स्थिति की ओर इशारा करते हैं, यह सोचे योग्य बात है   ?

अन्य ऐतिहासिक तथ्य :

चन्द्रगुप्त मौर्या ने धनानंद की बेटी से प्रेम विवाह किया था जिसमे दोनों का ही समान रिश्ता था | भारत के वेदों में ८ प्रकार के विवाहों का वर्णन है , जिनमे प्रेम विवाह से लेकर स्वयंवर तक को बराबर स्थान दिया गया है , फिर भारत की संस्कृति महिला विरोधी कैसे है | शिवाजी के दरबार में एकबार कोई मुग़ल राजा की स्त्री को पकड़ कर ले आया तब शिवाजी ने कहा – यह स्त्री हमारे लिए माता सामान है तथा इसे ससम्मान वापस भेज दिया जाए | यही नहीं शिवाजी को महान शासक बनाने के पीछे उनकी माता जीजाबाई का बहुत बड़ा हाथ था | शिवाजी से लेकर झांसी की रानी तक कभी महिलाएं इस देश में दबायी नहीं गयीं | फिर यह बात के भारत की संस्कृति महिला विरोधी थी , एकदम गलत प्रतीत होती है | यही नहीं महाभारत में भी सबसे ताकतवर भीष्म को भी मतस्यकन्या के कारण जीवनभर कुंवारा रहने तथा राजा ना बनने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी थी | क्या यह सब स्त्रियाँ कहीं से कमजोर नज़र आती हैं ?

इन सभी तथ्यों से यह साबित होता है के प्राचीन भारत में , भारत की संस्कृति में या भारत के हिन्दु धर्म में कभी महिलाओं को दबाने या शोषण की बात नहीं कही गयी थी | यह सब तब शुरू हुआ जब भारत पर विदेशी मुग़ल आक्रमण शुरू हुए | उस समय जब जीते हुए राज्य की महिलाओं को उठा कर उनसे बलात्कार एवं जबरन शादियाँ शुरू हुई- उस समय कई राजपूत महिलाओं ने पति की मृत्यु के तुरंत बाद जोहर करके स्वयं को भी जलाना शुरू किया जैसे रानी पद्मावती इत्यादि | कई जगहों पर बलात्कार आदि से बचाने के लिए बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं भी मुग़ल आतंक से बचने के लिए शुरू हो गयीं  |

इन्ही जोहर तथा अपनी इज्जत बचाने को लेकर जली हुई महिलाओं के विषय में अंग्रेज मिशनरियों ने जानबूझ कर सती प्रथा लिखना शुरू कर दिया | जबकि असली में सती अनसुइया, सावित्री जली नहीं थीं बल्कि अपने पतियों को मृत्य से बचा कर ले आई थीं | सती का असल अर्थ तो सत से है अर्थात जो स्त्री सत का आचरण करे वह सती होती है | अंग्रेज मिशनरियों को बंगाल में धर्म परिवर्तन करवाना था इसीलिए उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराई तथा यह झूठ लिखने और फैलाने शुरू किये | सबसे पहले बंगाल के ही सती औरतों के आंकड़े दुनिया के सामने रखे गए, जहाँ अंग्रेजो का राज था, एवं उन्ही के द्वारा खोले गए कोलकाता के अंग्रेजी कॉलेज से यह शोधकर्ताओ ने लोगों तक फैलाए | यदि उस समय की अंग्रेजी पार्लियामेंट की डिबेट के आंकड़े देखे जाए तो मिशनरी एक दिन अलग आंकड़े देते थे तथा दूसरे दिन अलग आंकड़े | इससे साफ़ साबित होता है के सतियों के जलने के कई आंकड़े झूठे थे तथा हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए गड़े गए थे | इस विषय में भारत की दो महिला लेखकों मधु किश्वर एवं मीनाक्षी जैन[iv] ने अपनी पुस्तकों में लिखा है |

इसी तरह अंग्रेजो ने दहेज़ हत्या को दहेज़ प्रथा का नाम दिया | जबकि असलियत में भारत में स्त्री धन नाम की एक प्रथा रही थी जिसमे पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार पुरुष का होता है उतना ही महिला का भी ऐसी मान्यता थी | इसी आधार पर पिता अपनी पुत्री के हिस्से का धन उसकी शादी के समय अपनी पुत्री को दे दिया करता था तथा बाकी बचा धन पुत्र के लिए रखता था | इसका दुरूपयोग तब होने लगा जब अंग्रेजों ने लूट कर भारत के लोगों को कंगाल बना दिया तथा उनकी उलटी शिक्षा पद्दति में पढ़कर लोग लालची तथा पैसे के लोभी हो गए | पहले तो वस्तु विनयम की व्यवस्था थी अतः पैसे का लोभ ही नहीं था मगर बाद में अंग्रेजो ने पैसे का लालच फैलाया तथा गरीबी के कारण लोगों ने शादी में पैसा मांगना शुरू कर दिया और इस कारण कई महिलाओं की हत्याएं हुई | मगर इसका भारत की संस्कृति या धर्म से कोई लेना देना नहीं था और जैसे जैसे भारत पढता लिखता जा रहा है यह दहेज़ हत्याएं भी ख़त्म होती जा रही हैं |

पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में तो सदियों से स्त्री-प्रधान समाज रहा है जहाँ बारात लेकर महिलाएं जाती हैं एवं पति महिला के साथ उनके घर जाता है |

इससे यह सिद्ध होता है की औरतों का जलना या दहेज़ के नाम पर शोषण भारत की संस्कृति या हिन्दू धर्म का हिस्सा कभी नहीं था | अंग्रेजों  ने इसे जानबूझकर सती और प्रथाओं से जोड़कर किताबों में प्रचलित करना शुरू कर दिया जिससे यह जुर्म की घटनायें हिन्दू धर्म से जोड़ी जा सकें और इसका इल्जाम हिन्दू धर्म पर लगाकर भारतियों को नीचा दिखाया जा सके |

आज़ादी के बाद :

आज़ादी के बाद यदि १९४७ से आज के आंकड़े देखे जाएँ तो महिलाओं का जीवन स्तर, साक्षरता दर, व्यापार तथा समाज के हर क्षेत्र में उनका दबदबा बढ़ता ही चला गया है | भारत की प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति एवं मुख्यमंत्री, राज्यपाल तक महिलाएं बन चुकी हैं | केरल जैसे राज्यों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से भी अधिक है एवं पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में तो सदियों से स्त्री-प्रधान समाज रहा है जहाँ बारात लेकर महिलाएं जाती हैं एवं पति महिला के साथ उनके घर जाता है | इसी तरह छत्तीसगढ़, झारखण्ड , ओड़िसा एवं मध्यप्रदेश के कई आदिवासी इलाकों में भी सदियों से पुरुष और महिला की स्त्री सामान ही रही है तथा उनके कामो में भी भेदभाव नहीं है | ऐसे ही बिहार के मैथिलि क्षेत्र में महिलाएं घर सँभालते हुए भी अपना वर्चस्व पुरुषों से नीचे नहीं होने देती बल्कि कई जगहों पर पुरुषों को उनकी बात माननी पढ़ती है | हाल ही में महिलाओं की स्थति में सबसे बुरे माने जाने वाले हरियाणा और राजस्थान में भी बेटी बचाओ अभियान के तहत काफी काम हुआ है तथा लिंगानुपात में महिलाओं का प्रतिशत अभूतपूर्व रूप से बढ़ा है | यही नहीं हरयाणा की कई बेटियों ने जैसे साक्षी मलिक, साइना नेहवाल, फोगट बहनों  आदि ने देश के लिए खेलों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है | १९९० के बाद से लगभग आधा दर्जन भारतीय युवतियां मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स के ख़िताब से नवाजी जा चुकीं हैं | बॉलीवुड और टीवी सीरियलों की ख्याति इतनी अधिक है की एक समय में अफगानिस्तान का क्राइम रेट रात को सिर्फ इसलिए कम हो जाता था क्योंकि उस समय लोग ‘क्योंकि सास भी कभी बहुत थी’ में तुलसी (स्मृति इरानी) को देख रहे होते थे | आज बाल-विवाह और सती या जौहर जैसी चीजे लगभग शून्य हैं | यही नहीं मुस्लिम महिलाओं के लिए भी भारत में अब तीन तलाक जैसे मुद्दों पर उनके हक़ में फैसले आने शुरू हो गए हैं |

यदि हिन्दुओं की या भारत की संस्कृति सचमुच इतनी ही खराब होती तो आज़ादी के बाद भी हालत वैसी ही रहती जैसी विदेशी लोगों की गुलामी के समय थी मगर आज़ादी के बाद भारत फिर उस दिशा में चल पड़ा जिस दिशा में भारत मुग़ल और अंग्रेजी आक्रान्ताओं के आने के पहले था | अतः खोट भारत या भारतीय संस्कृति में नहीं बल्कि गुलामी के समय हुए अत्याचारों तथा अत्याचारियों में थी | यह बात सीधे तौर पर नज़र आती है |

अंत में यही कहा जा सकता है की पश्चिमी बुद्धिजीवी तथा भारतीय गुलाम मानसिकता वाले बुद्धिजीवियों के यह तर्क इनमे वह भारत को महिला विरोधी देश बताते हैं बिलकुल गलत हैं

निष्कर्ष :

इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है के भारत कभी भी महिला विरोधी नहीं रहा तथा वैदिक संस्कृति या धार्मिक साहित्य में कहीं भी ऐसा नहीं सिखाया गया की महिलाओं का अपमान करना या उन्हें दबा कर रखना चाहिए | बल्कि इसके उलट अंग्रेजो ने विच हंटिंग के नाम पर यूरोप में कई महिलाओं की जान ली थी एवं कई सालों तक उनके देशों में महिलाओं के पास वोटिंग तथा बैंक में अकाउंट खुलवाने के अधिकार भी नहीं थे | आज भी मानवाधिकार की बात करने वाले सबसे बड़े देश अमेरिका में सबसे ज्यादा बलात्कार होते हैं तथा अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति उनके देश में नहीं बनी है | छोटी छोटी बच्चियां यूरोप में माँ बन रही हैं , परिवार व्यवस्था पूरी तरह से समाप्त हो गयी है | आधे से ज्यादा बच्चे अमेरिका में नशे और डिप्रेशन के शिकार हैं |  जबकि भारत में महिला मुख्यमंत्री, गवर्नर, विदेश मंत्री, विपक्ष की अध्यक्ष ,राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि सभी पदों पर आसीन हैं या पहले हो चुकी हैं | इसके बाद भी अंग्रेजी मीडिया, वामपंथी लेखक और विदेशी बुद्धिजीवी हमेशा भारत को महिला विरोधी बताने में लगे हुए हैं | अतः अंत में यही कहा जा सकता है की पश्चिमी बुद्धिजीवी तथा भारतीय गुलाम मानसिकता वाले बुद्धिजीवियों के यह तर्क इनमे वह भारत को महिला विरोधी देश बताते हैं बिलकुल गलत हैं तथा इन तथाकथित बुद्धिजीवियों की शिक्षा व्यवस्था प्रणाली में स्वदेशी सुधार की अत्यंत आवश्यकता है |

 

सन्दर्भ :

[i] ऋगवेद

[ii] रामायण (वाल्मीकि)

[iii] महाभारत

[iv] सती (मीनाक्षी जैन)

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Researcher and Writer at Think tank
Shubham Verma is a Researcher and writer based in New Delhi. He has an experience of 10 years in the field of Social work and Community development.
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2 COMMENTS

  1. Comment:You said indian women’s are sacrificing their self for the good of their husbands.I Don’t see any sacrifice in that..They were forced to take this sathi system and of course it wasn’t any kind of good thing.so sometimes you’re really wrong about the situations of women in old times.

    • इसे जौहर कहते हैं। बच्वा, इसके लिये शेरनी का कलेजा चाहिये, तुमलोगो की मा बहन से नही होगा।

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