क्या भारत शूद्र विरोधी था: एक ऐतिहासिक विश्लेषण – भाग २

युवाओं को यह बात समझनी चाहिए के वेदों के अनुसार वर्ण व्यवस्था कर्मो पर आधारित थी तथा उसे कास्ट के आधार पर अंग्रेजों ने करी |

क्या भारत शूद्र विरोधी था
क्या भारत शूद्र विरोधी था

इस श्रृंखला के पहले भाग को यहां पढ़ सकते है |

मुग़ल काल :

इसके जवाब में दलित बुद्धिजीवी एवं लेखक श्री विजय सोनकर शास्त्री जी अपनी पुस्तक ‘हिन्दू चर्मकार जाती’[i] में लिखते हैं के आज जिन्हें हम चमार समझते हैं असल में वो चंवर वंश के क्षत्रिय थे तथा मुगलों के समय उनसे सबसे अधिक वीरता से लडे मगर एक बार जब वो युद्ध हार गए तब मुगलों ने इन्हें बेईज्ज़त करने के लिए कहा के या तो इस्लाम कबूल करो, या फिर हमारी औरतों के हरम की गंदगी उठाओ तथा मरे हुए जानवरों की खाल उतारने का काम करो | इन शूरवीरो ने वो काम स्वीकार किया तथा इस्लाम स्वीकार नहीं किया | कालांतर में यह काम करते करते उनका यह हाल हो गया के लोग उन्हें छूने से कतराने लगे | जब की असल में यह क्षत्रिय राजा थे यही हाल वाल्मीकि जाती तथा खटीक जाती के साथ भी हुआ | अंग्रेजों के समय में भी इनसे यह काम करवाया गया तथा इतिहास में अंग्रेजों ने इन अत्याचारों का पूरा इल्जाम बाकी जातियों पर लगा दिया के इन्होने तुमको लूटा |

धर्मान्तरण का खेल ओड़िसा , पूर्वोत्तर, बंगाल तथा तमिल नाडू , केरला आदि में तेजी से किया गया |

ब्रिटिश काल :

अंग्रेजों ने पहले सेन्सस में बड़ी चतुराई से जितनी भी जातियों को लूटा था , उनके धंधे बर्बाद किये थे , जिनके संसाधन छीने थे तथा जिनका शोषण किया था | इन सभी को एस.सी./ एस.टी. में डाल दिया तथा जो अभी भी समृद्ध बच गए थे या अंग्रेजों से लड़ रहे थे उन्हें जनरल में डाल दिया | इसके बाद पुस्तकों में यह लिखवा दिया के जनरल वालों ने बाकी सभी का सदियों से शोषण किया तथा इन्हें दबाया तथा इनसे बहुत सी चीजों में सहुलियते छीन कर आरक्षण की व्यवस्था करवा दी , इसी के साथ एस.सी./ एस.टी को यह बताना शुरू किया के जब तक हिन्दू धर्म में रहोगे तब तक गरीब और शोषित रहोगे अतः तुम इसाई बन जाओ | इस तरह अंग्रेजों ने एक तरफ तो फूट डालो राज करो नीति के तहत भारतियों को आपस में लड़ाया वहीँ दूसरी तरफ उनका मत परिवर्तन करवाके उन्हें इसाई भी बनाया | इसाई बनाने के पीछे की मंशा धार्मिक ना होकर पुर्णतः राजनैतिक थी , क्योंकि इसाई बनना मतलब पश्चिम की तरह कपडे, भाषा, खान पान तथा पश्चिम का अनुसरण करवाना था | यही चाल अमीर जनरल केटेगरी के बच्चो को कान्वेंट एजुकेशन देकर चली गयी | जिससे मानसिक रूप से इनके बच्चे भी पश्चिमी तथा नास्तिक हो गए |

आज़ादी के बाद :

आज़ादी के बाद भी चूँकि शिक्षा तंत्र मेकाले वाला ही चलता रहा अतः सभी वामपंथी बुद्धिजीवी उसी इतिहास को पढ़कर वही सब पढ़ाने में लग गए | शक्ति का केंद्र ब्रिटेन से अमेरिका पहुँच गया तो विश्वविध्यालय भी ऑक्सफ़ोर्ड की जगह कैलिफ़ोर्निया तथा हार्वर्ड हो गया | अब वहां से हिन्दू विरोधी रिसर्च करने के लिए फण्ड आने लगे जैसे भारत महिला विरोधी था , दलित विरोधी था , आदिवासी विरोधी था ऐसे शोध करने पर अवार्ड बंटने लगे तथा अंग्रेजी शिक्षा में पढ़े चाटुकार अंग्रेजों के तलवे चाटने लगे | इससे हुआ यह के हिन्दुओं के साहित्य में से एक एक बात को पकड़ कर कई किताबे , फिर उनपर पीएचडी , फिर उन्ही पर पेपर लिखे जाने लगे | यह सब बुद्धिजीवी वर्ग के मानसिक दिवालियेपन को दर्शाता है के अपने ही देश के साहित्य के खिलाफ जे.एन.यू. , टाटा इंस्टिट्यूट, जाधवपुर, आदि विश्वविध्यालयो में कई शोध हुए तथा एक भ्रम जाल खड़ा कर दिया गया | इसमें से महिषासुर, आर्य द्रविड़, सीता का शोषण, द्रोपदी का शोषण, शम्भुक का शोषण , कर्ण-एकलव्य को दलित बताना आदि कई झूठ तथा मनघडंत बाते रची गयी | इससे समाज में एस.सी / एस.टी और जनरल के बीच नफरत पैदा कर दी गयी | तथा धर्मान्तरण का खेल ओड़िसा , पूर्वोत्तर, बंगाल तथा तमिल नाडू , केरला आदि में तेजी से किया गया | आज के समय में यह नफरत इतनी बढ़ गयी है के दलित और ब्राह्मणों के बीच नफरत बढती ही जा रही है | जबकि किसी को यह नहीं पता के कौन दलित है और कौन ब्राह्मण ? क्योंकि यह कास्ट तो अंग्रेजो की बनायी हुई थी |

एस.सी./एस.टी के लोगों को खुलकर बोलना चाहिए के हम कोई शूद्र नहीं हैं हम भी उसी विशुद्ध कुल से आये हैं

उपसंहार :

आज जब भारत इतना पढ़ लिख गया है तब युवाओं को यह बात समझनी चाहिए के वेदों के अनुसार वर्ण व्यवस्था कर्मो पर आधारित थी तथा उसे कास्ट के आधार पर अंग्रेजों ने करी | अंग्रेज इतने मुर्ख थे के कास्ट को हिंदी में क्या कहते हैं यह भी नहीं समझ सके क्योंकि यह जाती, वर्ण, कुल, गोत्र , वंश सभी को कास्ट समझ कर उल्टा सीधा लिख कर चले गए | अफ़सोस की बात यह थी के हमारे लोगों ने इस मान्यता को चुनौती देने की अपेक्षा मान लिया , जिससे समाज बंटता चला गया | मैंने यह लेख आसान भाषा में लोगों को समझाने के लिए लिखा है के युवाओं को अब यह बात इन अंग्रेजी पढ़े लिखे प्रोफेसरों तथा वामपंथियों से पूछनी चाहिए के क्यों हमें आपस में लड़ा रहे हो | तथा एस.सी./एस.टी के लोगों को खुलकर बोलना चाहिए के हम कोई शूद्र नहीं हैं हम भी उसी विशुद्ध कुल से आये हैं बस मुगलों और अंग्रेजो के कारण हमें इतने साल भुगतना पढ़ा | जनरल के लोगों को चाहिए के सभी वर्गों को गले लगायें अपने साथ बैठाए सभी साथ में भारत के मूल ग्रन्थ एवं इतिहास पढ़े तभी यह देश मानसिक गुलामी तथा बौद्द्धिक गुलामी से आज़ाद हो सकेगा | इसी के साथ धर्मान्तरण करने वाले लोगों के षड्यंत्र तथा दुष्प्रचार वाली किताबों से दोनों ही वर्गों को बचना चाहिए क्योंकि इन्ही के द्वारा गलत इतिहास रचकर देश को बांटने का प्रयास किया जा रहा है | अंत में मै इस निष्कर्ष पर पंहुचा हूँ के भारत कभी भी शूद्र विरोधी नहीं रहा बल्किकिसी का भी विरोधी नहीं रहा क्योंकि भारत में तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की संस्कृति रही है जिसमे इंसानों के साथ पशु, पक्षियों तथा पेड़ पौधों आदि के भी कल्याण की कल्पना की गयी है | अतः भारत की इस तरह बदनामी किसी एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत की जा रही है , भारतियों को इसे समझ कर जवाब देने की कला सीखनी होगी |

[i] हिन्दू चर्मकार जाती , हिन्दू खटीक जाती , हिन्दू वाल्मिक जाती – विजय सोनकर शास्त्री

Note:
1. Text in Blue points to additional data on the topic.
2. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

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Researcher and Writer at Think tank
Shubham Verma is a Researcher and writer based in New Delhi. He has an experience of 10 years in the field of Social work and Community development.
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