
लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने ३१ मई, २०१४ को प्रधान मंत्री मोदी को लिखा और मालेगांव विस्फोट की योजना के बारे में बताया
लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित उच्च न्यालय से अगस्त २१ को मिली जमानत पर लगभग नौ साल के बाद जेल से रिहा हुए | उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पद ग्रहण करने के तुरंत बाद एक पत्र में यह संकेत दिया कि एक प्रमुख राजनैतिक दल के तत्कालीन अध्यक्ष की साजिश की वजह से उन्हें पचमढ़ी, मध्य प्रदेश, से मुंबई भेजा गया था | वहां एटीएस ने एक अवैध नागरिक के रुप में सेवानिवृत्त सेना अधिकारी की गिरफ्तारी की |
पुरोहित ने यह संकेत दिया कि जब व पचमढ़ी, मध्य प्रदेश में १८ महीने के अरबी पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे थे तब उन्हें कुछ रहस्यों का पता लगा, और उन्होंने एक सैन्य अधिकारी के रूप में इस रहस्य की छानबीन जारी रखी | पुरोहित ने इन सब रहस्यों पर गहराई से जांच करवाने की मांग की | पुरोहित, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) और पाकिस्तान की इंटर सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) पर देश के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक है | कश्मीर और महाराष्ट्र में आतंकवाद और काउंटर-इंटेलिजेंस में अपने काम के लिए भी प्रसिद्ध हैं पुरोहित | असल में, उनकी सफलता ने ही अभी तक अज्ञात बलों को उनकी बर्बादी के लिए उकसाया था |
नवी मुंबई में तलोजा केंद्रीय जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए पुरोहित, जो २००८ के मालेगांव बम विस्फोट मामले के मुख्य आरोपी हैं, ने यह दावा किया कि महाराष्ट्र एटीएस द्वारा मंच-प्रबंधित उनके खिलाफ खिलाफ झूठा केस गढ़ा गया है | एटीएस और उनके नीति निर्माताओं को इस बात की जानकारी अच्छे से थी | उस समय रहे प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री शिवराज पाटिल, रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी और तो और उस समय रहे भारत के राष्ट्रपति इन बातों से सम्बंधित याचिकाओं को नजरअंदाज कर दिया |
पुरोहित ने यह सुझाव दिया कि इस षडयंत्र का नेतृत्व महाराष्ट्र एटीएस से अधिक शक्तिशाली ताकतों द्वारा मास्टरमाइंड किया गया था | पुरोहित ने यह कहा कि उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह का ध्यान “राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष द्वारा मामले को राजनीतिकरण करने की कोशिशों” पर खींचा था; पर बाद में, शब्द ‘कांग्रेस’ को काटकर पेंसिल से ‘राजनीतिक पार्टी‘ के नाम से बदल दिया गया था | उस पत्र को फिर कलम से लिखा गया | पुरोहित ने इस मामले में सिंह की ‘वेंटिलोक्विज़्म’ कला की खिल्ली उड़ाई |
मामले को समझाते हुए, पुरोहित ने कहा कि महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में २९ सितंबर, २००८ को एक बम विस्फोट हुआ था, जिसमें सात लोग की मौत हुई थी और कई लोग घायल भी हुए थे | ब्लास्ट के समय पुरोहित दूर पचमढ़ी में थे |
जानकार सूत्रों ने यह दावा किया है कि पुरोहित ने देश में कम से कम सात आतंकवादी हमलों का खुलासा किया था, और उन्हें नवंबर २००८ के आगामी हमले के बारे में अग्रिम ज्ञान था | संभवत: यही उनके पतन का कारण बना |
२४ अक्टूबर, २००८ को कर्नल आर.के. श्रीवास्तव, सेना मुख्यालय से पचमढ़ी पहुंचे | उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि वे पुरोहित को एटीएस महाराष्ट्र से बातचीत करने का प्रबंध करवाए | श्रीवास्तव को यह भी निर्देश दिया गया था कि व पुरोहित को दिल्ली लाकर उनकी मुलाकात मिलिट्री इंटेलिजेंस-२० से करवाए | पर पुरोहित का यह कहना है कि श्रीवास्तव ने कभी इन संदेशों के बारे में उन्हें नहीं बताया और वास्तव में, शुरुआत से श्रीवास्तव ने उनका घृणास्पद रूप से पेश आए |
सेना शिक्षा कोर और एईसी के एडजुटेंट ने २९ अक्टूबर, २००८ को पुरोहित को आगे बढ़ने का आदेश दिया (इसके बिना वह अपना कर्तव्य स्टेशन नहीं छोड़ सकते थे) और उन्हें सेना मुख्यालय में निदेशक एमआई-२० को रिपोर्ट करने को कहा | श्रीवास्तव ने पुरोहित को अपना मोबाइल फोन एडजुटंट के पास छोड़ने को कहा | पुरोहित के परिवार का यह मानना था कि वह दिल्ली जा रहे थे |
पर भोपाल हवाई अड्डे पर कर्नल श्रीवास्तव ने एक झूठे आदेश के तहत, पुरोहित को मुंबई की उड़ान भरने के लिए मजबूर कर दिया | पुरोहित के पास अपने परिवार से संवाद करने का कोई माध्यम नहीं था |
पर यह बात उल्लेखनीय है कि २००९ में जांच के एक सेना न्यायालय ने पुरोहित के अपहरण और कर्नल श्रीवास्तव द्वारा अवैध गिरफ्तारी के दावों की पुष्टि की | विभिन्न गवाह (जिसमे लेफ्टिनेंट कर्नल जी.सी मोहंता, उस समय रहे एईसी के एडजुटेंट, ब्रिगेडियर राजकुमार, उस समय रहे डीडीजी एमआई और अन्य कई) ने यह पुष्टि की कि पुरोहित को झूठे आंदोलन के आदेश पर ले जाया गया था |
२९ अक्टूबर २००८ की रात को मुंबई पहुंचने पर, पुरोहित को एक सूमो में खंडाला के मुंबई-पुणे राजमार्ग पर स्थित एक आम नागरिक के बंगले पर ले जाया गया | यहाँ वह एटीएस अधिकारियों की अवैध हिरासत में ४ नवंबर, २००८ तक रहे | अधिकारियों ने उनपर अकथनीय मानसिक और शारीरिक यातनाएं कीं | उनके परिवार के महिला सदस्यों के खिलाफ अपर्याप्त धमकियां भी दी जाती थी | उस समय रहे एटीएस के प्रमुख, हेमंत करकरे, उस समय रहे एडिशनल डीजी पुलिस परमबीर सिंह, निरीक्षक अरुण खानविलकर (किसी अन्य मामले में उन्हें सेवा से खारिज कर दिया गया था) और उस समय रहे सहायक सीपी, मोहन कुलकर्णी सबसे ख़राब अपराधियों में सबसे प्रमुख थे |
इसी बीच, समझौते से, एटीएस ने पुरोहित द्वारा सावधानी से गढ़ी गई खुफिया नेटवर्क को हासिल करने में कामयाबी पाई
इस अवधि में अपर्णा पुरोहित अपने पति का पता लगाने के प्रयास में असफल रही क्यूंकि एईसी एडजुटेंट और फ्टिनेंट कर्नल जी.सी. मोहंता, दोनों ही पुरोहित को दिल्ली जाने के लिए आदेश देने के बाद पूरी तरह अंजान थे | ५ नवंबर, २००८ को लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को मुंबई एटीएस को अवैध रूप से सौंप दिया गया था | इन अवैध श्रृंखलाओं के आधार पर मालेगाँव २००८ में हुए बम विस्फोट के मामले में उन्हें आरोपी नंबर ९ करार दिया गया |
अनुरेखण करते हुए यह पता चला कि पचमढ़ी में अरबी पाठ्यक्रम से पूर्ण, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने एक खुफिया अधिकारी के रूप में, दक्षिणी कमान लैजियन यूनिट, पुणे, देवलाली, नाशिक की सेवा की थी | सुधाकर चतुर्वेदी, जोकि उनके पंजीकृत खुफिया स्रोतों में से एक थे, को मालेगांव मामले में आरोपी नं ११ करार दिया गया था | एटीएस ने यह दावा किया कि उन्होंने चतुर्वेदी को २० नवंबर २००८ को ही गिरफ्तार कर लिया था | उन्होंने यह भी कहा कि २५ नवंबर, २००८ को पंचनामे के तहत चतुर्वेदी को कैंटोनमेंट क्षेत्र में दिए गए घर की तलाशी ली जाए और वहां उन्हें मालेगांव विस्फोट में कथित तौर पर इस्तेमाल किए गए आरडीएक्स के निशान बरामद हुए | चार्जशीट में यह बताया गया कि चतुर्वेदी के घर पर ही बम इकट्ठा किया गया था |
पर इन सिद्धांतों का खुलासा सेना के न्यायालय के जांच के दौरान हुआ जब दो स्वतंत्र गवाह, मेजर प्रवीण खानजादे (गवाह १) और उस समय रहे सुबेदार केशव.के.पवार (गवाह २) ने इस बात को जाहिर किया कि ३ नवंबर, २००८ को (पुरोहित की गिरफ्तारी के दो दिन पहले और चतुर्वेदी की गिरफ्तारी के 17 दिन पहले) उन दोनों ने एक एटीएस असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर, शेखर बागडे, को चतुर्वेदी के घर पर साक्ष्य रोपण करते हुए पकड़ा | पकड़े जाने पर बागडे ने उनसे यह विनती की कि वे उनके उपस्थिति के बारे में किसी को ना बताए | लेकिन मेजर खानजादे ने अपने देवलाली के सभी वरष्ठ अधिकारीयों और मुख्यालय, दक्षिणी कमान, पुणे, को इस घटना के बारे में सूचना दे दी थी | कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आधिकारिक रिकॉर्ड के पृष्ठ ३३० (८ जुलाई, २००९) और पृष्ठ 426 (२७ जुलाई २००९) में खानजडे और पवार के बयान पाए जा सकते हैं |
जाहिर है, पुरोहित और चतुर्वेदी की गिरफ्तारी के लिए जाली सबूत इकट्ठा करने वाले एटीएस के अधिकारी अपने ही वरिष्ठ मेजर खानजादे के खिलाफ कोई लिखित बयान नहीं दे सकते थे | २००९ में इन प्रबल साक्ष्य के उपलब्धि के कारण सेना के अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से महसूस हुआ कि वे गहरी षड्यंत्र में फस गए हैं, जिसमे कि लुटियंस दिल्ली के अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति भी शामिल थे | उन्होंने यह फैसला किया कि सर्वोत्तम विकल्प यही होगा कि वे इन सबूतों को बेहतर दिन के लिए रख दे – यह एक चतुर चाल थी |
इसी बीच, समझौते से, एटीएस ने पुरोहित द्वारा सावधानी से गढ़ी गई खुफिया नेटवर्क को हासिल करने में कामयाबी पाई | इस मामले में उनके तीन पंजीकृत खुफिया ऑपरेटर को सह-आरोपी बना दिया गया और अन्य ४ लोगों को उनके खिलाफ गवाह के रूप में पेश किया गया |
यह काफी स्पष्ट है कि पुरोहित के पंजीकृत किये गए स्रोतों के नाम एटीएस तक पहुँचाने में किसी मिलिटरी इंटेलिजेंस यूनिट के सदस्य का ही हाथ हो सकता है | ऐसा लगता है कि इस अवधि के दौरान, अन्य खुफिया सैन्य अधिकारियों के पंजीकृत परिसंपत्तियां में भी समझौता किया गया होगा – यह केवल महाराष्ट्र में नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी हुआ होगा | भारत सरकार और अन्य सरकारी सेवाओं के मुख्यालय को इस संबंध में पूछताछ जरी करना चाहिए |
मार्च-अप्रैल २०११ में यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया था | पर आज तक एनआईए भी आरोप पत्र दर्ज करने में विफल रहा है |
अपना संदेश समाप्त करते हुए पुरोहित ने प्रधान मंत्री से यह आग्रह किया की न सिर्फ वे, बल्कि इस मामले से जुड़े सभी निर्दोषों की रिहाई सुनिश्चित तरह से हो | अपने आप को एक पुराना खिलाडी बुलाते हुए, पुरोहित ने “अपने सबसे सम्मानित और प्रिय मातृभूमि” की सेवा करने के “विलक्षण सम्मान” की प्रार्थना की ।
इस पत्र को पढ़कर उन सभी अनुभवी सैनिकों के आंखों में आँसू आ गए, जिन के साथ यह साझा किया गया था | अब यह सरकार का फ़र्ज बनता है कि वह उस सैनिक को उसका सम्मान वापिस कर उसे गौरवान्वित करे |
जांच की शुरुआत जम्मू और कश्मीर के बाहर हिंदू पवित्र स्थान पर हुए हमले से होनी चाहिए – अक्षरधाम, अहमदाबाद, सितम्बर २००२ – और साथ ही साथ सोनिया-गांधी-नेतृत्व यु.पी.ऐ के तत्वावधान में एक हिन्दुओं के खिलाफ हो रहे आतंकवाद पर ध्यान आकर्षित हो |
सबसे पुर्ण, कर्नल आर.के. श्रीवास्तव और मुंबई एटीएस के बचे जीवित सदस्य – एडिशनल डीजी पुलिस परमबीर सिंह, निरीक्षक अरुण खानविलकर, और सहायक सीपी, मोहन कुलकर्णी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए | हेमंत करकरे की शर्मनाक बर्ताव को भी रिकार्ड करना चाहिए |
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