केंद्रीय जांच ब्यूरो चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के खिलाफ जांच करने में देरी क्यों कर रही है ?

उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो पर कार्ति चिदंबरम के खिलाफ निष्क्रियता का आरोप लगाया

कार्ति के खिलाफ निष्क्रियता
कार्ति के खिलाफ निष्क्रियता

नवम्बर 9 को उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो से एक बहुत ही उपयुक्त प्रश्न पूछा: “आपने पिछले दो महीनों में कार्ति चिदंबरम से पूछताछ क्यों नहीं की ?” यह प्रश्न तब उठा जब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने कार्ति चिदंबरम को कुछ शर्तों पर 4 से 5 दिनों के लिए विदेश जाने की अनुमति देने पर आपत्ति दिखाई | लंदन में गुप्त खातों को बंद करने की कार्रवाई का उद्धरण देते हुए, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तीव्रता से इसके खिलाफ तर्क दिया और कहा कि विदेश पहुंचने पर अगर कार्ति स्थिति का पालन नहीं करते हैं तो कोर्ट और केंद्रीय जांच ब्यूरो दोनों असहाय हो जाएँगे |

यह उच्च समय है कि प्रधान मंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए | यह सच है कि सीबीआई में अभी भी कुछ वरिष्ठ अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्हें यू.पी.ऐ की अवधि के दौरान नियुक्त किया गया था और उनके चिदंबरम से घनिष्ठ संबंध है

उच्च न्यायालय ने जांच एजेंसी से कहा कि अगर उन्होंने कार्ति को वर्तमान में नहीं बुलाना का फैसला ले  लिया है तो वह कार्ति से पूछताछ नहीं करने के कारणों के बारे में उससे अवगत कराए | “आप प्रतिवादी (कार्ति चिदंबरम) को 4-5 दिनों के लिए विदेश जाने की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय से निर्देश लीजिए कि उन पर क्या शर्तें लागू की जा सकती है“, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर और डी वाई चंद्रचुद की पीठ ने पूछा |  इस मामले को 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई थी | सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो आईएनएक्स मीडिया रिश्वत और एयरसेल-मैक्सिस मामले में कार्ति चिदंबरम से पूछताछ क्यों नहीं कर रही है, दोनों मामला पी चिदंबरम से सम्बंधित है |

कार्ति के मामले को निपटाने में गलती केंद्रीय जांच ब्यूरो की है | यह मामला प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) से संबंधित है, जिसमे कार्ति चिदंबरम ने पिता चिदंबरम के भूतपूर्व कार्यकाल में अवैध विदेशी निवेश प्रस्ताव बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी के लिए आईएनएक्स मीडिया से रिश्वत स्वीकार की थी | इससे भी बदतर कार्ति एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में दूसरे सम्मन के बाद भी, केंद्रीय जांच ब्यूरो के समक्ष उपस्थित नहीं हुए हैं | कार्ति ने पिछले महीने केंद्रीय जांच ब्यूरो को एक पत्र में ये दावा किया कि वे सर्वोच्च न्यायालय में सम्मन पर सवाल करना चाहते हैं और तब तक एजेंसी को उनके खिलाफ  कार्रवाई नहीं करनी चाहिए |

क्या कोई जांच एजेंसी के सम्मन जारी करने पर इस तरह का पत्र भेज सकता है ? पिछले एक महीने में  कार्ति ने एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो के समन्स के खिलाफ कोई मामला दायर नहीं किया है | ऐसा क्यूँ ? क्योंकि कार्ति और उनके पिता चिदंबरम यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी याचिका 2-जी बेंच के समक्ष आ जाएगी, जहां भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका दर्ज है | इसलिए यह दीर्घसूत्री रणनीति रची जा रही है |

कार्ति के वकील, कपिल सिब्बल और गोपाल सुब्रह्मण्यम मामले को यथासंभव अधिक खींचने का प्रयास करेंगे, जिस दौरान उनके माता-पिता नलिनी और चिदंबरम कोर्ट में उपस्थिति रहते हैं | अदालत ने अभी तक केंद्रीय जांच ब्यूरो की जांच में हस्तक्षेप नहीं किया है, और मामला केवल कार्ति के विदेशी यात्रा तक सीमित है | और यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कार्ति को सीबीआई के सामने पेश होने के लिए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने पहली सुनवाई में मजबूर किया था यह आश्वासन देते हुए कि अगर वह ऐसा करते हैं तभी उनकी याचिका सुनी जाएगी  |

यह उच्च समय है कि प्रधान मंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए | यह सच है कि सीबीआई में अभी भी कुछ वरिष्ठ अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्हें यू.पी.ऐ की अवधि के दौरान नियुक्त किया गया था और उनके चिदंबरम से घनिष्ठ संबंध है  | जिनकी वजह से, केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा निकली जाने वाली लुक आउट नोटिस को प्रत्यक्ष कर दिया गया था और कार्ति ने मद्रास उच्च न्यायालय की एक बेंच को संपर्क किया | सवाल यह है कि सीबीआई चिदंबरम और उनके बेटे के खिलाफ मामला निलंबित क्यूँ कर रही है, जबकि उनके खिलाफ एफआईपीबी की मंजूरी के लिए गैरकानूनी और रिश्वत लेने का ठोस सबूत है ?

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