
आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के एनएसईएल के मूल कंपनी पर किए गए हाल ही की कारवाही से ऐसा लगता है जैसे वे किसी हितार्थी को लाभ पहुँचा रहे है।
श्रीमान मोदी! जाग जाईये! यदि भारत में कंपनियों के साथ ऐसा ही बर्ताव करना था तो उन्हें हमारे देश में आने के लिए आमंत्रित नहीं करते, मेक इन इंडिया अगर कुछ मायने ही नहीं रखता तो दुनियाभर के व्यवसायियों को न्योता ही न देते। ये भी स्पष्ट कर देते कि स्टार्ट अप इंडिया का भी कोई मोल नहीं क्यूंकि हमारे न्यायालयों के मुताबिक कॉर्पोरेट नकाब को कभी भी बेनकाब किया जा सकता है। मैं आशा करता हूँ कि आप इस तरह का संदेश नहीं भेजना चाहते हैं दुनिया को! यदि कॉर्पोरेट जगत के पिछले दिनों की घटनाओं पर एक नज़र दौड़ाई जाये तो कुछ निम्नलिखित प्रकार के संदेश मिलते हैं-
दिन-प्रतिदिन के कारोबार के संचालन के लिए अपने परिचालन खातों के एफटीआईएल को अस्वीकार करने के लिए यह असभ्य कदम, शाह को ऑक्सीजन काट देने का एक प्रयास है और उसे क्या कहा जाता है – एक चुड़ैल शिकार
पहला, मुंबई पुलिस के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ की आश्चर्यजनक कार्यवाही [1] , जिसके चलते उन्होंने 63 मून्स टेक्नोलॉजीस ( एफटीएईल) के परिचालन खातों को बन्द कर दिया। यह कार्यवाही हमें सिक्योरिटीज एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) से जुड़े समरूप किस्से की याद दिलाती है, जिसमें सेबी ने 13 वर्तमान व भूतपूर्व एफटीएईल एवं एमसीएक्स कर्मचारियों पर भेदी लेन-देन करने के आरोप लगाये थे। उनके बैंक खाते भी जब्त किए गए जो सिक्योरिटीज एप्लेट ट्रिब्यूनल में शिकायत दर्ज करने के बाद रद्द कर दिया गया। अब 63 मून्स टेक्नोलॉजीस के चलते खातों को भी जब्त करने की कोशिश की जा रही है। क्या यह इसलिए किया जा रहा है ताकि एफटीएईल सर्वोच्च न्यायालय में अपना केस पैसों के अभाव में ना लड़ सके?
दूसरा, 63 मून्स टेक्नोलॉजीस (एफटीएईल) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया रिट याचिका पर मुंबई उच्च न्यायालय का फैसला आने वाला है। भारत के कॉर्पोरेट इतिहास में पहली बार दो प्राइवेट कंपनीयों को कंपनीस एक्ट, 1956 के अधिनियम 396 के अंतर्गत संविलीन का आदेश दिया गया है। याद दिला दें यह अधिनियम सरकारी कंपनीयों को, उनकी सहमति से, एकजुट करने के लिए लागू किया जाता था। [2].
क्या उच्च न्यायालय ने अपने इस आदेश के परिणामों पर विचार किया? इस आदेश से व्यावसायिक आवरण और सीमित दायित्व जैसे सिद्धांतों पर ख़तरा मंडराता है। क्या यह पहले ही सन्देहास्पद रहे अंतरराष्ट्रीय निवेशक के मन में डर नहीं बढ़ाएगा और वे और दूर नहीं जाएँगे, खास तौर पर जब बात मूल कंपनीयों के अपने सहायक कंपनी में निवेश करने की होती है? यह सिद्ध हो चुका है कि स्फूर्तिवान अर्थव्यवस्था बनाने के लिए उद्यमिता अतिआवश्यक है। इस एक आदेश ने पूँजीगत उद्यमी समुदाय को भयभीत कर दिया है।
क्या इसमें कुछ राज छिपा हुआ है? क्या 63 मून्स और जिग्नेश शाह को बेवजह दंडित किया जा रहा है? यदि हाँ, तो क्यूँ? क्या चिदंबरम अपने हितेषियों से यह काम करवा रहे हैं ताकि एफटीएईल को तबाह किया जाये?
एनएसईएल संकट क्या है?
आइए कुछ आकड़ों पर नज़र डालते हैं, जो चित्र 1 में दर्शाये गये हैं, यह एनसईएल में गठित घटनाओं का विस्तृत घटनाक्रम है।
भारत में तीन वस्तु विनिमय क्षेत्र हैं – एनएसईएल, एनसीडीईऐक्स स्पॉट एक्सचेंज एवं भारतीय बहुमूल्य वस्तु संग्रह विनिमय लिमिटेड [3], दि फॉरवर्ड मार्केट्स कमिशन (एफएमसी) , पूर्व काल में वस्तु बाजार नियामक, ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को भृमित करते हुए कहा कि एनसईएल उसे दिए गए छूट, एफसिआरए अधिनियम 27 ऐ के तहत, का गलत इस्तेमाल कर रहा है। यह एक सामान्य छूट थी जिसके बावजूद एफएमसी ने मंत्रालय को सिफारिश की जिसके चलते मंत्रालय ने एनएसईएल से 27 अप्रैल 2012 को सफाई मांगते हुए नोटिस भेजा।
एनएसईएल ने अविलंब उस नोटिस का जवाब दिया और मंत्रालय ने चुप्पी साध ली। इसके बाद कोई करवाही नहीं हुई। परंतु 12 जुलाई 2013 को पत्र द्वारा मंत्रालय ने एनएसईएल को नए अनुबंध ना जारी करने तथा मौजूदा अनुबंधों को 31 जुलाई 2013 से पूर्व निपटाने को कहा।

यह संकट पूर्णतः एफएमसी द्वारा निर्मित किया गया था और उसने ना ही दोषियों को दंडित किया और ना ही इस संकट को सुलझाने का प्रयास किया। उसने केवल एनएसईएल, एफटीएईल और जिग्नेश शाह के खिलाफ कार्रवाही की। चिदंबरम के कहने पर एफटीएईल ग्रुप पर, के. पी. कृष्णन तथा एफएमसी के चेअरमन रमेश अभिषेक द्वारा, करवाही की गई। रक्षक स्वयं भक्षक बन गया।
इस करवाही में नियामकों व सरकारी एजेंसियों का पूरा ध्यान केवल एनएसईएल, एफटीएईल और जिग्नेश शाह पर केंद्रित था। इसका फायदा उठाते हुए दोषियों गोदामों से माल चूरा लिए, स्टॉक्स बैंक में जमा कराए और कुछ ने एमडी व सीईओ अंजनी सिन्हा के मदद से स्टॉक्स को कम बताया।
परंतु, दोषियों को न केवल पूर्ण भुगतान मिला बल्कि उन्होंने एक्सचेंज के बन्द होने के पश्चात ना सामान खरीदे और ना ही स्टॉक्स की भरपाई की।
दोषियों से कौन करवाएगा भरपाई?
अब तक की सारी भरपाई केवल एनएसईएल के प्रयासों की वजह से ही हुई है। चित्र 2 में दर्शाया गया है, 8% पैसों का भुगतान किया गया है। नवम्बर 2017 [4] तक 24 अपराधियों से पैसे वसूले गये हैं। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ एवं ईडी ने दोषियों की संपत्ति को जब्त कर लिया है, फिर एफटीएईल के चलते खातों को क्यों जब्त किए गया? क्या सिर्फ मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से यह करवाही की गयी है?

दाल में कुछ काला
दिन-प्रतिदिन के कारोबार के संचालन के लिए अपने परिचालन खातों के एफटीआईएल को अस्वीकार करने के लिए यह असभ्य कदम, शाह को ऑक्सीजन काट देने का एक प्रयास है और उसे क्या कहा जाता है – एक चुड़ैल शिकार । यह अशिष्ट व्यवहार, जिसके कारण एफटीएईल के खाते बन्द किए गए, को केवल एक षड़यंत्र ही कहा जा सकता है। आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ की यह करवाही सिर्फ हालातों को बिगाड़ देगी। यही सही वक़्त है कि प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें एवं न्याय दिलाएं! क्या वे ऐसा करेंगे?
References:
[1] NSEL scam: Mumbai police attach FTIL’s operational accounts – Apr 6, 2018, Livemint.com
[2] Bombay HC upholds NSEL merger order; 63 Moons to move Supreme Court – Dec 4, 2017, Economic Times
[3] Spot Exchanges in India – arthapedia.in
[4] Date-wise payment realised from buying members – Nov 24, 2017, NationalSpotExchange.com
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