शिया, अहमदिया, यजीदी, सुन्नी मुसलमानों से मजार, दरगाह, मकबरा आदि को ना पूजने तथा सिर्फ एक इश्वर और एक किताब को मानने की अपील की जा रही है |
भूमिका :
आज से कुछ दशक पहले तक उत्तर भारत में दुर्गा जी की झांकी लगाते हुए , होली दिवाली मनाते हुए , गणेश पूजा तथा पंडाल लगाते हुए एवं रामलीला में हनुमान जी इत्यादि की भूमिका करते हुए मुसलमान युवकों का नज़र आना आम बात हुआ करती थी | इस समय मज्जिदों में लाऊड स्पीकर भी नहीं हुआ करते थे | यही नहीं मुसलमान औरते साड़ी-सलवार पहनना , मेहँदी लगाना , महावर लगाना, मंगलसूत्र पहनना इत्यादि करती देखी जाती थीं | इसी तरह राजस्थान में जैसलमेर के आस – पास के मुसलमान राजस्थानी सूफियाना तथा सिन्धी रंग में रंगे हुए नज़र आते थे जो पगड़ी तथा धोती कुर्ता पहना करते थे तथा कई भारतीय प्राचीन संगीत घरानों से शिक्षा प्राप्त करके संगीत के द्वारा अपनी पहचान बना लिया करते थे |
यही हाल दक्षिण भारत में भी था जहाँ मुस्लिम महिलाएं सुबह उठकर घर के बाहर रंगोली बनाती थी , बालों में गजरा पहनती थी , पहनावे में साडी तथा भाषा में मलयालम, तेलगु, तमिल या कन्नड़ में बात करती थी तथा दक्षिण भारत के कई त्यौहार सभी मिलकर मनाया करते थे | राजस्थान और उत्तरप्रदेश के कई इलाकों में कुछ मुसलमान शाकाहारी भी थे तथा गाय पाला करते थे और उसका दूध बेचकर गुजारा करते थे | १९७०, १०९८० यहाँ तक के १९९० के दौरान भी यदि कुछ कट्टर मुल्लों को छोड़ दिया जाए तो गाँवों में अधिकतर मुसलमान इसी तरह हिन्दुओं से तथा बाकी समुदायों से घुले मिले थे | इनमे से बहुत से इस बात पर गर्व करते थे की उनके पूर्वज हिन्दू थे तथा कई तो बैठकर कहानियाँ सुनाया करते थे की उनके दादा ठाकुर या ब्राह्मण इत्यादि थे | इस समय कोई किसी से मुल्ला बोलने पर चिडता नहीं था तथा हिन्दू और मुसलमान बहुत जगह पर एक साथ काम कर रहे थे |
गाना गाने तथा संगीत को जीवन बना लेने वाले सूफियों को सिंध में गोली मारी जा रही है तथा भारत में संगीत बंद करने की सलाह दी जा रही है | “
अचानक २०-२५ सालों से कुछ भारत में बदलाव सा आना शुरू हो गया है | आज अधिकतर मुसलमान बिना मूछ की दाड़ी, छोटे पयजामे , बड़ा कुर्ता तथा सर पर जालीदार टोपी में दिखाई देने लगे हैं | यही नहीं जो थोडा बहुत भारतीय संस्कृति के करीब रहते थे उन्हें उन्ही की मज्जिदों से धमकियाँ मिल रही हैं की हिन्दू पहनावे , हिन्दू कपडे, हिन्दू त्यौहार , हिन्दू रीती रिवाज छोड़ दें | औरतों को कई जगह पर जीन्स , साडी, आदि कपड़ों की जगह बुरखा पहनने की नसीहत दी जा रही है | गाना गाने तथा संगीत को जीवन बना लेने वाले सूफियों को सिंध में गोली मारी जा रही है तथा भारत में संगीत बंद करने की सलाह दी जा रही है | अब मज्जिदों पर भी तेज आवाज के लाऊड स्पीकर लग गए हैं | तथा हर शहर में कुछ इलाके ऐसे बन गए हैं जहाँ घुसते ही लगता है की आप पकिस्तान या अरब के किसी मुल्क में आ गए हो | भारतीय भाषाओँ की जगह मदरसों और मज्जिदों में अचानक प्राथमिकता उर्दू, फ़ारसी तथा अरबी को दी जाने लगी है | दक्षिण भारत में भी यही सब होता चला जा रहा है | शिया , अहमदिया, यजीदी आदि को तो बहुत जगह काफिर बता दिया गया है , यही नहीं सुन्नी मुसलमानों से भी मजार , दरगाह , मकबरा आदि को ना पूजने तथा सिर्फ एक इश्वर और एक किताब को मानने की अपील की जा रही है | मतलब की यह कट्टरता सिर्फ हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों या भारतीय परम्पराओं के खिलाफ ही नहीं बल्कि भारतीय इस्लाम के खिलाफ भी लागू होती चली जा रही है |
सोचने वाली बात यह है की भारत के मुसलमान जो अधिकतर मिलजुलकर रहते थे अचानक कट्टर कैसे होते चले जा रहे हैं |
१९८९ में कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को मार के भगा देना, या मुंबई में १९९२ में दंगे होना फिर गुजरात के गोधरा में इकट्ठे होकर ट्रेन की बोगी जला देना एवं मुंबई हमले, संसद हमले तथा कई बम ब्लास्ट इत्यादि के कारण हिन्दुओं के मन में भी इस्लाम को देखने के प्रति नजरिया बदलता चला गया | कई बार एक घटना के बदले में दूसरी घटनाएं भी हुई मगर सोचने वाली बात यह है की अचानक से भारत के मुसलमान जो अधिकतर मिलजुलकर रहते थे अचानक कट्टर कैसे होते चले जा रहे हैं | कई लोग इसमें मुंबई दंगे या गुजरात दंगो को कारण बताते हैं | मगर मुंबई दंगो के पहले कश्मीरी पंडितो की हत्याएं कश्मीर में हुई थी और हजारों पंडित बेघर हो गए थे | इसी तरह गुजरात दंगे गोधरा में जलाई गयी ट्रेन की बोगी के कारण भड़के थे | अतः दोनों ही घटनाओं में पहले गलती कहीं और से हुई , जिसका खामियाजा बाद में दूसरों को भुगतना पड़ा |
आगे जारी रखा जायेगा…..
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