
किन कारणों से भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता सहिंता के दायरे में बदली सूचना सेवाएं प्रदान करने वाली इकाइयों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति ?
सूचना सेवाएँ प्रदान करने वाली इकाइयों के विनियमन के पीछे सबसे महतवपूर्ण लक्ष्य इस बात को सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार का देश का वितीय आंकड़ा जो किसी एक सूचना इकाई के पास दर्ज है उस की देख रेख विभिन वित्तीय संस्थओं के हाथ में हों जिनकी व्यापार जगत में अपनी साख हो और वो इस बात को सुनिश्चित करें कि जिस प्रकार भारत में पिछले २० साल से बाज़ार में अन्य स्टॉक एक्सचेंज और वित्तीय संसथान इस कम को बखूबी अंजाम दे रहीं हैं वो इकाइयाँ भी उनका अनुसरन करें !
सूचना सेवा इकाई के पीछे का मूल सन्दर्भ
सूचना सेवा इकाई एक प्रकार से कानून के दायरे में व्यवस्था का वो हिस्सा है जो किसी उधार लेने वाले और बैंक यां अन्य वित्तीय संस्थान के बीच किन शर्तों पे वित्तीय अनुबंध हुआ था उस बात को लागु करवाने में सहायक साबित होती है और साथ ही वो डिजिटल दस्तावेज प्रस्तुत कर यह भी प्रमाणित कर सकती है की किन शर्तों पे उधार लिया गया था, क्या उधार की शर्तों का कोई उल्लंघन हुआ या नहीं और किसी प्रॉपर्टी पे इंटरेस्ट के रूप में कोई आमदनी हुई है या नहीं ! उधार लेने वाला इस प्रक्रिया को पूरी तरह से प्रमाणित करता है !
सूचना सेवा इकाई से इस बात की उम्मीद की जाती है की वो सारी जानकारी भारत में ही कंप्यूटर के हार्डवेयर में दर्ज कर के रखेगी!
सूचना सेवा इकाई से इस बात की उम्मीद की जाती है की वो संवेदनशील क्रेडिट डाटा को उस समय तक दर्ज कर के रखता है जब तक ऋण चक्र चलता है और बकाया राशी, वापसी और जमानत राशी जमा नहीं हो जाती ! जिस प्रकार असली ज़िन्दगी में उधार लेने वालों की व्यतिगत जानकारी दर्ज की जाती है और ऋण न चुकाने पर या वापसी करने में चुक होने पे उनकी जानकारी साँझा की जाती है उसी प्रकार से सूचना सेवा इकाई को अति संवदेनशील ढंग से इस जानकारी को संभाल के रखना पड़ता है !
सूचना सेवा इकाई को उपलब्ध जानकरी के आधार पर आलोचनात्मक नहीं बनना चाहिए !
सूचना सेवा इकाई से इस बात की उम्मीद की जाती है की वो दोनों –उधार लेने वाले का और उधार देने वाले का प्रमाण एकत्रित करेगी और वित्तीय अनुबंध पे बिना किसी का साथ देते हुए तटस्थ रहेगी !
सूचना सेवा इकाई से इस बात की उम्मीद की जाती है की वो सारी जानकारी भारत में ही कंप्यूटर के हार्डवेयर में दर्ज कर के रखेगी! प्राधिकरण अधिकारी कभी भी डिजिटल डाटा की सचाई जानने के लिए या उस जानकारी को हासिल करने के लिए इस बात का फैसला कर सकता है जिससे वो उधार लेने वाले के लिए हानिकारक न साबित हो ! ऐसा करना इस लिए भी जरूरी है क्यूंकि उधार लेने वाला फिर कभी किसी अनुबंध की शर्तों को पूरा नहीं कर सकेगा और इस से उस के मौलिक अधिकारों का हनन होगा !
सूचना सेवा इकाईयों में जो जानकारी उपलब्ध रहती है वो स्टॉक एक्सचेंज और डिपोजिटरी से भी ज्यादा संवदेनशील होती है इसलिए प्रतक्ष विदेशी निवेश के निर्णय बुनियादी ढांचे को धयान में रख कर लिए जाने चाहिए ताकि उनमे एकजुटता बनी रहे !
टेलिकॉम क्षेत्र, विमानन उद्योग में विदेशी मूल के कारण भारत को काफी लाभ पहुंचा है !
ऐसा नहीं होना चाहिए की प्रतिभूति बाज़ार में प्रतक्ष विदेशी निवेश की सीमा ४९ % हो और क्रेडिट बाज़ार की सूचना इकाई में इस की सीमा १०० % तय की जाये जो की बैंक की सीमा से भी अधिक है !
ऐसे निर्णय लेने से पहले विदेशी निवेशकों की सुरक्षा के हवाले से इस बात का धयान रखना बहुत जरूरी होता है की क्या पूरे देश का आंकड़ा अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक है या नहीं ! जिस प्रकार पूरे विश्व में उथल पुथल मची हुई है ऐसे समय में भारत अपनी आर्थिक कमजोरियों को सारे विश्व के सामने नहीं ला सकता और भी ऐसे समय में जब दुश्मन देश किसी भी कीमत पे कंप्यूटर सिस्टम में घुस पैठ करके , कंपनी की मैनेजमेंट को प्रलोभन दे कर खरीद ले और गंभीर वित्तीय संकट पैदा कर दे !
ऐसा देखने को मिल रहा है की पश्चिम के देशों में ढांचा इतना मजबूत और टिकाऊ नहीं हैं जितना की हमारे यहाँ भारत में है ! ये ही वजह है पश्चिम के ढांचे की नक़ल नहीं की जाती और भारतीय मूल्यों की और भारत की संस्कृति की कद्र की जाती है क्यूंकि वो लोगों को आश्वस्त करते हैं की उनके साथ कोई दोखा नहीं होगा !
लेकिन जिस प्रकार से भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड ने मात्र ६ महीनों के भीतर सूचना सेवायें प्रदान करने वाली इकायों के विनियमन में फेर बदल कर दिया वो रहस्मई है !
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड ने जनता से १७ अगस्त २०१७ को अपने सुझाव देने को कहा है ताकि विदेशी मूल के मालिकों द्वारा चलायी जा रही सूचना इकाई में तब्दीली की जा सके !
सूचना सेवा इकाई , भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता सहिंता , के अनुसार एक प्रतिस्पर्धी उद्योग है जहाँ अंतर के बावजूद उपभोक्ता के फायदे को धयान में रखा जाता है !
विदेशी मूल के मालिक अपने साथ सबसे अच्छी व्यापार पद्धतियों को लेकर आते हैं और घरेलू निवेश को विकल्प के तौर पे इस्तेमाल करते हैं !
डेटा मैनिंग तकनीक की मदद से भारत अपने यहाँ निवेश की संभावनाओं को बढ़ा सकता है जिससे यहाँ निवेशकों में बेहतर गुणवक्ता और अधिक धन वापसी की उम्मीद जागेगी !
उद्योगों का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो रहा है और सीमा पार के बाजारों के अनुभव से वित्तीय बाज़ार में उछाल आयेगा !
टेलिकॉम क्षेत्र, विमानन उद्योग में विदेशी मूल के कारण भारत को काफी लाभ पहुंचा है !
इन कारणों की गणना करने के बाद अगर विदेशी नियंत्रण के दोष या सूचना सेवा इकाई में प्रतक्ष विदेशी निवेश के बहुमत की चर्चा करें तो इन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा !
- सूचना सेवा इकाई का आंकड़ा अति संवदेनशील है क्यूंकि इसके दायरे में आम नागरिक और वो सस्न्थान आते हैं जिनका पंजीकरण भारत में हुआ है और उन्होंने वित्तीय बाज़ार से बड़ी मात्रा में उधार लिया है ! यह आंकड़ा लगभग वास्तविक समय में जमा किया जाता है इसलिए इसका आर्थिक दुरूपयोग संभव हैं !
- यदि इस आंकडे का या किसी भी जानकारी का विदेशी मूल की इकाईयों द्वारा दुरूपयोग किया जाता है तो उस के दूरगामी परिणाम होंगे और वो देश को संकट की स्तिथि में डाल सकता है !
- सूचना सेवा इकाई भारत के ढांचे के हिसाब से निर्मित इकाई है जिस का लक्ष्य कोर्ट में लंबित मामलों में देरी होना और ऋण के मामलों को निबटाना ,पैसा न मिलना और प्रतिभूति ब्याज के मामलों का निबटारा कराना शामिल है !
- जिस प्रकार रजिस्ट्री होती है सूचना सेवा इकाई भी उसी प्रकार अपना किरदार निबाहती है जिस प्रकार रजिस्ट्रार के दफ्तर में प्रॉपर्टी के रिकॉर्ड रखे जाते हैं
- उधार लेने के साथ जुडी हैं कई सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएं ! अगर कहीं कोई किश्त छूट जाती है तो भारतीय मूल्यों को धयान में रख कर इज्ज़त के साथ कारवाही की जाती है ! ऐसा नहीं है की कभी ऐसा नहीं सुना हो की जब बैंक के अधिकारी परचून की उधारी का हिसाब लेने गए हौं तो उस नागरिक नें आत्महत्या कर ली हो, यह बड़े दुर्भाग्य की बात है !
- सूचना सेवा इकाई से इस बात की उम्मीद की जाती है की वो प्राधिकरण के लोगों के साथ मिलके दिवालिया हुए लोगों की आर्थिक समस्या का निबटारा करें और नयी शुरुवात की प्रक्रिया आरभ करें ! उद्यमशीलता के लिए यह जरूरी है की समाज हार को स्वीकार करे !
- बैंकिंग व्यापार में भारत में DICGC फैसिलिटी है जहाँ क्रेडिट गारंटी सिस्टम कुछ चुनौतियों की वजह से ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर पाया और इसलिए सूचना सेवा इकाई का यह अनोखा प्रयोग बैंकों से बकाया राशी प्राप्त करने के लिए लगातार नए कलेवर में प्रयोग में लाना चाहिए
- दुनिया के ऐसे बहुत से देश हैं जो सामरिक दृष्टि से एक बार फिर से वैश्वीकरण को अपनाना चाहते हैं! इन देशो में धन का कोई आभाव नहीं है और बड़ी संख्या में विदेशी उनके यहाँ आ कर बसे हुए हैं ! उदारीकरण का यह मतलब नहीं है की आप अपने हिसाब से ऐसी कोई नीति नहीं बना सकते जिस से आप को आर्थिक दृष्टि से फायदा मिलेगा और आप के देश की सीमा के अन्दर आप विदेशी निवेशकों को पैसा लगाने से प्रतिबंधित कर दें ! इसलिए ऐसी इंडस्ट्री में जहाँ आंकडे इकनोमिक इंडिया की सफलता को दर्शाते हैं वहां ऐसी इंडस्ट्री को विदेशी मूल के निवेशकों के लिए खोला जाना किया जाना चाहिए योह भी बिना किसी पारस्परिक व्यवस्था के !
- और अगर विदेशी मूल के मालिकाना हक की बात तकनीक हासिल करने के उद्देश्य से की जा रही है तो यह बात कहीं नहीं ठहरती क्यूंकि भारतीय मूल की कम्पनियाँ जैसे की TCS ने विश्व भर में वित्तीय क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है !
- सूचना सेवा इकाई का इक मात्र रोल सूचना कोष जैसा है ! येही व्यवस्था वित्तीय क्षेत्र में डिपोजिटरी के नाम से होता है ! भारत का विदेशी मूल की सूचना कोष की सहभागिता पे लम्बे समय से यही मत रहा है की किसी भी प्रकार से विदेशी निवेश को ४९ % तक सीमित रखा जाये और इस से ज्यादा का निवेश सुरक्षा के हिसाब से ठीक नहीं है . विदेशी मूल की संस्था में किस की कितनी हिस्सेदारी है और क्या वो दुश्मन के हाथों में है इस बात का पता लगाना पहले भी मुश्किल था और आज भी मुश्किल है !
- Right to privacy को लेकर चली आ रही बहस के बीच जहाँ एक और यह मामला सुप्रीम कोर्ट के ९ सदस्य पीठ के सामने विचाराधीन है वहीँ दूसरी और data security को लेकर इस मामले से जुड़ा हुआ दूसरा पहलु ये भी कहता है की किसी कारण अगर कोई नागरिक वित्तीय जिम्मेदारियां नहीं निभा पाता तो उस का क्या होगा ! जिस प्रकार AADHAR की रूप रेखा तयार की गयी है , उसी प्रकार से एक सरकारी संस्था या उस से मिलती जुलती सरकारी व्यवस्था सूचना सेवा इकाइयों के लिए जरूरी चाहिए क्यूंकि यह इकाई अपने आप को इस बात के लिए जिम्मेदार मानती है की उस को जनता के हित की रक्षा करनी है !
भारत के परिपेक्ष में सरकार के लिए इस बात पे गंभीर रूप से विचार करना अति अनिवार्य हुएहै की वो एक ऐसी नीति बनाये जो विदेशी मूल की सहभागिता के नियम कानून को तय करे और किन क्षेत्रों में उनकी सहभागिता की आवशकता है इस बात पे बहस करे और भारत की सामरिक दृष्टि से, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अपनी सभ्यता को बचाने का प सटीक प्रयास करे ! जहाँ एक और ६० % बैंकों की मालिक खुद सरकार है वहां पे अगर सूचन सेवा इकाई फ़ैल होती है और NPA के आंकडे को संभाल नहीं पति है तो वित्तीय संकट तो गहराता जायेगा और विकास की गति को रोकेगा !
इस समय की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऐसा कहा जा सकता है की जिस प्रकार से भारतीय नागरिक उधार को लेकर अति संवदेनशील है और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से वो यह बात कबूल नहीं करता की वो अपना लोन चुकाने में चूक गया इन्ही कारणों की वजह से और आर्थिक तंगी के चलते वो आत्महत्या को मजबूर हो जाता है !
इसी परिपेक्ष में सरकार को और वित्तीय विभाग को इस बात का जवाब देना लाजमी हो जाता है आखिर उन्होंने क्यूँ यह नीति बदली !
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