हाशिये पे आये अलगाववादी नेता कश्मीर में गुस्सा भड़काने का काम कर रहे हैं?

अलगाववादी नेता एक सोची समझी रणनीति के चलते यह कदम उठा रहे थे

अलगाववादी नेता एक सोची समझी रणनीति के चलते यह कदम उठा रहे थे
अलगाववादी

अपनी साख बचाने के लिए सुरक्षा बलों को बना रहे निशाना

जिस दिन से राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने ‘टेरर फंडिंग’ के मामलों और ‘हवाला’ रैकेट के माध्यम से कश्मीर घटी में हिंसा भड़काने के मामलों की जाँच शुरू की है कश्मीर के अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी, यासीन मालिक और मिरवैज़ उम्र फारूक एक ऐसे मुद्दे की तलाश में थे जिस का इस्तेमाल आम आदमी को आसानी से बहकाने के लिए और सुरक्षा बलों के जवानों को नुक्सान पहुँचाने के लिए किया जा सके !

अलगाववादी नेता एक सोची समझी रणनीति के चलते यह कदम उठा रहे थे ताकि वो घाटी में अपनी खोई हुई ज़मीन वापिस हासिल कर सकें और जनता के बीच लगातार गिरती साख को बचाने में कामयाबी हासिल कर सकें!

इस से पहले की इस जाँच की आग की लपटें उन तक पहुंचे और बचे हुए अलगाववादी नेता भी जाँच एजेंसी के लपेटे में आयें उन्होंने पहले से ही अपने बचाव का रास्ता दूंदना शुरू कर दिया था !

इस बीच जब से कश्मीर घटी में चोटी काटने की घटनाओं ने तूल पकड़ना शुरू किया उसी दिन से अलगाववादी नेता भी इस सारे मामले पे अपनी पैनी नज़र जमाये बैठे थे !

आम शेहरी की परेशानी को कम करना तो दूर की बात थी इन अलगाववादी नेताओं ने आग में घी का कम करना शुरू कर दिया ताकि जनता को बहकाया जा सके !

मौका मिलते ही उन्होंने कश्मीर की जनता को चोटी कटने की घटनाओं के खिलाफ एक जुट हो कर प्रदर्शन करने को कहा।

इस के लिए उन्होंने शुक्रवार की नमाज़ के बाद प्रदर्शन करने की रणनीति बनाई ! इस के साथ ही उन्होंने इसे कश्मीरियों के खिलाफ सोची समझी साजिश रचने का आरोप भी लगाया ।

अलगाववादी नेता एक सोची समझी रणनीति के चलते यह कदम उठा रहे थे ताकि वो घाटी में अपनी खोई हुई ज़मीन वापिस हासिल कर सकें और जनता के बीच लगातार गिरती साख को बचाने में कामयाबी हासिल कर सकें !

लेकिन इस से पहले की घाटी के अलगाववादी नेता भी प्रदर्शन में शामिल होते और हालात ख़राब करने की साज़िश रचते पुलिस अधिकारिओं ने मीरवाइज को घर में नजरबंद कर दिया और यासीन मलिक को भी गिरफ्तार कर लिया !

सुरक्षा को धयान में रखते हुए श्रीनगर और बड़गाम में इंटरनेट सेवा को ससपेंड कर दिया गया । इंटरनेट सेवा ससपेंड करने का कदम चोटी कटने की अफवाहों पर लगाम लगाने के उद्देश्य से किया गया ताकि कोई भी अनासिर मौके का फयदा उठा कर तनाव न पैदा कर सके !

क्या अलगाववादी नेता गुस्सा भड़काने का काम कर रहे?

जब से अलगाववादी नेता, जिनका नाम कश्मीरी की आज़ादी की लड़ाई में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के शिकंजे में अपने आप को फंसता देख रहे हैं वो अपनी तरफ से हर एक कोशिश कर रहे ताकि किसी भी तरह से वो बदनाम होने से बच जाएँ और उनकी जगह भले किसी दुसरे का नाम जाँच एजेंसी के सामने आ जाये !

इस बीच ये अलगाववादी नेता वो सब हथकंडे अपनाना चाहते हैं जिस के चलते वो आम कश्मीरी को एक बार फिर से बेवक़ूफ़ बना लें और अपनी साख बचाने के लिए उनके कंधे का इस्तेमाल करें !

चोटी काटने की घटनाओं के पीछे किस का हाथ है अभी कश्मीर घाटी में इस बात की जाँच चल रही है लेकिन इस बीच अलगाववादी नेता इस प्रयास में लगे हुए हैं की किसी तरीके से इन सब घटनाओं के पीछे किसी बड़ी साज़िश का पर्दाफाश किया जा सके और असली दोषियों को इस की सजा मिले !

कब तक कश्मीरी अवाम अलगाववादी नेताओं को सहन करेगा?

कश्मीरी समाज के बुद्धिजीवी और पढ़े लिखे लोग, नौजवान ,महिलाएं और बच्चे आखिर कब तक अलगाववादी नेताओं के द्वारा बनाय गए ढांचे के अन्दर ज़िन्दगी गुज़र बसर करेंगे और उनके ऊपर हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद नहीं करेंगे !

अब लगता है समय आ गया है जब की इन अलगाववादी नेताओं की भी जवाबदेही तय होना चाहिए !

आखिर कश्मीर घाटी के लोगों के प्रति उनकी कोई ज़िम्मेदारी बनती है या नहीं ! आखिर कब तक वो वहां की मासूम जनता को यूं ही गुमराह करते रहेंगे और उनको चैन की ज़िन्दगी भी नहीं जीने देंगे !

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब अलगाववादी नेताओं ने अपनी गर्दन बचाने के लिए गन्दी राजनीती का सहारा लिया हो! कुछ साल पहले भी जब कश्मीर घाटी में नशे की लत के शिकार युवा और देह व्यापर से जुड़े लोग पुलिस के हाथ लगे थे उस समय उन्होंने भारत सरकार को इस का ज़िम्मेदार बताते हुए जन भावना को भड़काने की साज़िश की थी !

कश्मीर में यूवा लड़के लड़कियां संगीत में अपनी रुचि न दिखाएँ और न ही संगीत से जुड़े प्रोग्राम में हिस्सा लें इस का विरोध किया था ! उनका यह मानना था इस से कश्मीर की तहज़ीब पे बुरा असर पड़ेगा !

ठीक उसी तरह इस समय अलगाववादी नेता राष्ट्रीय जाँच एजेंसी से लोगों का धयान भटकाने के लिए चोटी काटने के मामलों को तूल दे रहे हैं !

अभी तक पुलिस को कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली

कश्मीर घाटी में लगातार चोटी काटने के मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए स्थानीय पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां गहरी नींद से जाग उठे हैं और दोषियों की धर पकड़ को लेकर घम्बिरते से प्रयास कर रहे ! इस सब के बावजूद अभी तक किसी भी मामले में जाँच आगे नहीं बढ़ी है और न ही इस स्सज़िश का खुलासा हो पाया है आखिर क्यूँ इतनी बड़ी संख्या में चोटी काटने के मामले कश्मीर घाटी में सामने आ रहे और क्यूँ इतनी कड़ी सुरक्षा के बीच अभी तक किसी की गिरफ़्तारी संभव नहीं हो सकी !

इस सब हंगामे के बीच अनंतनाग में एक सत्तर साल के बुज़ुर्ग व्यक्ति को चोटी काटने के संदेह में पत्थर मारकर मौत के घाट उतार दिया गया । पूरे प्रदेश में चोटी काटने और चोटी काटने का प्रयास की 40 के करीब घटनाएं सामने आयी हैं। प्रदेश सरकार ने इन घटना की जांच के लिए स्पेशल इंवेस्टिगेटिंग टीम बनायीं है। इसके अलावा इस बारे में सुराग देने वाले को 6 लाख रूपये का इनाम देने का एलान भी किया गया है।

लोगों का असहयोग जांच में रुकावट: डीआइजी

वादी में चोटी कटने की घटनाओं को सुलझाने के लिए अंधेरे में हाथ-पांव मार रही पुलिस ने शनिवार को कहा कि लोगों का असहयोग ही मामले की तह तक पहुंचने में रुकावट है। लोगों ने जिन युवकों को चोटी काटने वाला समझकर पकड़ा और पीटा, वह सभी जांच में निर्दाेष निकले। सेंट्रल कश्मीर रेंज के डीआइजी गुलाम हसन बट ने एसएसपी श्रीनगर इम्तियाज इस्माइल पर्रे संग बातचीत में कहा कि पीडि़तों के परिजनों और आम जनता के असहयोग के कारण ही पुलिस अभी तक यह गुत्थी सुलझाने में नाकाम रही है।

उन्होंने कहा कि एक ही मामले में हमारे साथ पीडि़ता और उसके परिजनों ने सहयोग किया। हमने वह मामला हल कर लिया। यह मामला गुलबर्ग कॉलोनी का है। जांच में उस घर की एक नाबालिग नौकरानी ही दोषी पाई गई। उसने पीडि़ता और उसके परिजनों पर अनावश्यक तंग करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उसने बदला लेने के लिए ही यह हरकत की थी।डीआइजी गुलाम हसन बट ने कहा कि जहां भी लोगों ने किसी युवक को चोटी काटने वाला समझ कर पकड़ा और उसे हमारे हवाले किया, वह जांच में निर्दाेष ही साबित हुआ है।

उन्होंने बताया कि सेंट्रल कश्मीर रेंज में 23 मामले चोटी कटने के दर्ज हुए हैं, लेकिन पीडि़तों और उनके परिजनों का सहयोग पुलिस को नहीं मिल रहा है। उन्होंने पीडि़तों के मनोरोगी होने की आशंका जताते हुए कहा कि 90 फीसद मामले बंद कमरों में हुए हैं। ऐसे मामलों में पीडि़ता और उसके परिजनों से भी बातचीत करना जरूरी हो जाता है, तभी पता चलेगा कि आखिर हुआ क्या है, लेकिन लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसे में हम कैसे तय करेंगे कि यह चोटियां कैसे और कौन काट रहा है।

डीआइजी ने कहा कि हमने पीडि़त महिलाओं के बयान लेने के लिए चौबीस घंटे एक महिला पुलिस अधिकारी को उपलब्ध कराने का फैसला किया है। यह महिला अधिकारी पीडि़त महिलाओं से बातचीत करेगी और उनके बयान लेगी। उन्होंने इस मौके पर लोगों से अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील करते हुए कहा कि मीडिया को भी ऐसे किसी मामले की पूरी पड़ताल करने के बाद ही उस पर खबर करनी चाहिए।

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