यह लेख चीन की “विकास के लिए ऋण” की कार्यप्रणाली का विवरण करता है अथवा भारत की अपने पड़ोसी देश से मैत्री स्थापित करने की रणनीति का वर्णन है।
चीन से सहायता प्राप्त करने वाले देशों में यह बहुत बार हुआ है कि दीर्घ अवधि केलिए शुरू हुआ ऋण लेनेवाले देश के लिए तब तक गले का फंदा बन कर रह जाता है जब तक उस की एक बड़ी राशि ना अदा कर दी जाए ज्यादातर समय, ऋण का भार इतना अधिक होता है कि वे देश चीन को अपनी ऋण दायित्वों से बाहर निकलने के लिए अपनी भूमि सौंप देते हैं। हम्बनटोटा बंदरगाह का मामला जिसके तहत वहाँ की भूमि 99 वर्षीय लीज पर चीन को प्रदान की जा रही है, इसका नवीनतम उदाहरण है। यह लेख चीन की “विकास के लिए ऋण” की कार्यप्रणाली का विवरण करता है अथवा भारत की अपने पड़ोसी देश, जो अधिकांश सांस्कृतिक रूप से इससे समानता रखते हैं, उनसे मैत्री स्थापित करने की रणनीति का वर्णन है।
श्रीलंका
श्रीलंका के पूर्व प्रधान मंत्री महिन्दा राजपक्षे, अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ स्थायी बनाना चाहते थे, जिसमें हम्बनटोटा के शांत बंदरगाह शहर को भी शामिल किया गया था। राजपक्षे ने सोचा कि अगर वे सभी सुविधाओं के साथ एक अत्याधुनिक बंदरगाह का निर्माण कर पाए, तो वे अपने प्रतियोगी देश, दुबई और सिंगापुर के समक्ष खड़े हो पाएंगे।
एलटीटीई के साथ लम्बे युद्ध से ध्वस्त होने के बाद श्रीलंका में बंदरगाह बनाने के लिए ना ही पैसा था और न ही संसाधन। वहीँ चीन का प्रवेश हुआ। चीन ने 8 बिलियन डॉलर का सौदा उनके समक्ष रखा जिसके तहत एक ऋण, एक हवाई अड्डे का निर्माण और द्वीप की लंबाई और चौड़ाई को जोड़ने के लिए आवश्यक सड़क की पेशकश की गयी।
क्या दुबई और सिंगापुर की कीमत पर ग्राहक प्राप्त करने में हम्बनटोटा सफल हुआ? दुर्भाग्य से नहीं। 2010 में बंदरगाह स्नेहपूर्वक खोला गया था, लेकिन कार्गो लाइनें अपने मौजूदा ट्रांसशिलेशन केंद्रों से स्विच करने में असमर्थ रहीं। 2016 के अंत में, अपने चीनी लेनदारों के लिए अपने ऋण की सेवा के लिए अपर्याप्त राजस्व के कारण, श्रीलंका सरकार ने एक 1.2 अरब डॉलर का डेट-टू-इक्विटी स्वैप किया जिसके तहत एक चीनी राज्य कंपनी ने 99 साल की लीज़ पर बंदरगाह का स्वामित्व ले लिया।
2016 की पहले छमाही में, पाकिस्तान के चीनी आयात में 30% की बढ़ोतरी हुई, जबकि चीन को पाकिस्तानी निर्यात में 8% की कमी आई।
चीन के लिए एक विशाल रणनीतिक जीत स्वरुप, समझौते के तहत, प्रधान मंत्री रानिल विक्रमेसिंघ की सरकार द्वारा श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को आधिकारिक तौर पर 25 जुलाई 2017 को 99 साल के लिए चीन को सौंप दिया गया। कागजी तौर पर, चीन केवल बंदरगाह की वाणिज्यिक परिचालन की देख रेख के लिए सहमत हो गया है लेकिन केवल वक़्त ही बताएगा कि क्या वे श्रीलंका के मामलों में दखल करना शुरू करेगा या नहीं। ईस्ट इंडिया कंपनी तो हम सभी को याद है।
पाकिस्तान
चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के विकास के बहाने चीन धीरे-धीरे पाकिस्तान पर नियंत्रण हासिल करने के लिए सलमी रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है। गिलगित-बाल्तिस्तान के निवासियों ने अस्थिर कीमतों पर जबरन अपनी ज़मीन छिनने के कारण अपने देश में हथियार उठा लिए हैं। गिलगित के निवासी आरोप लगा रहे हैं कि चीन ने अपने देशवासियों के लिए एक आवासीय परिसर का निर्माण किया है जो हजारों लोगों को शरण दे सकता है। इन आवासों में सभी चिह्न चीनी भाषा में हैं, और इससे भी बदतर, चीनी गिलगिट-बाल्टी की स्थानीय राजनीति में शामिल होने की शुरुआत कर रहे हैं।
पाकिस्तान की अधिकांश जनसंख्या चीन द्वारा बनाई गई एक हाईवे के साथ रहती है। ऐसी उम्मीद रखना मूखर्ता होगी कि चीन असैनिक पदाधिकारि और आम नागरिकों के भेष में इन राजमार्गों पर अपने सशस्त्र बलों के सैनिकों को ना नियुक्त करें।
यहां तक कि व्यापार में, पाकिस्तान का कहना है कि चीन से यह सौदा उनको महंगा पड़ रहा है। 2016 की पहले छमाही में, पाकिस्तान के चीनी आयात में 30% की बढ़ोतरी हुई, जबकि चीन को पाकिस्तानी निर्यात में 8% की कमी आई।
पाकिस्तानी अधिकारियों का आरोप है कि पाकिस्तानी सामानों पर बीजिंग द्वारा लगाए गए व्यापार बाधाओं और एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को पाकिस्तान के खिलाफ झुकाया गया है । यही है इनके “पर्वत से ऊँची और महासागर से गहरी मैत्री” की गुहार । सिर्फ यही नहीं जुलाई 2016 और फरवरी 2017 के बीच पाकिस्तान के चालू खाते का घाटा 121% बढ़ गया है।
नवंबर 2017 में, नेपाल ने वन-बेल्ट-वन-रोड पहल परियोजनाओं में से एक पर सहयोग खींच लिया ।
पाकिस्तान को सीपीईसी के लिए 30 साल के दौरान करीब 90 अरब डॉलर चीन को वापस देने होंगे और इसमें चूक हो जाने पर का संचयी ऋण ब्याज शामिल नहीं है।
नेपाल
नेपाल ने अपने संविधान में किए गए परिवर्तनों के कारण हुई उथल-पुथल के बाद चीन के साथ छेड़खानी शुरू की । क्षतिकर नाकाबंदी के बाद, भारत और नेपाल के बीच संबंध धीर-धीरे सामान्यता की ओर वापस आ रहे हैं। शायद नाकाबंदी के दौरान भारत के कथित समर्थन से मुकाबला करने के लिए, नेपाल ने चीन तक पहुंचने शुरू कर दिया था और हम्बनटोटा के समान ही एक समझौते पर लगभग अपने हस्ताक्षर कर दिए थे।
नवंबर 2017 में, नेपाल ने वन-बेल्ट-वन-रोड पहल परियोजनाओं में से एक पर सहयोग खींच लिया, जिसके परिणामस्वरूप चीन ने नेपाल के लिए हाइड्रो-इलेक्ट्रिक बांध के लिए एक बांध का निर्माण करने का प्रस्ताव रखा था। नेपाल सरकार ने चीनी राज्य की कंपनी चीन गीह्वाबा ग्रुप के साथ बुधिन्दकी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बांध का निर्माण करने के लिए अमेरिका से 2.5 बिलियन डॉलर का सौदा को छोड़ने का फैसला किया है। इस सौदे को नए प्रशासन द्वारा रद्द कर दिया गया, जिसने वैध खुली निविदा प्रक्रिया के बिना समझौता किये जाने की आलोचना की थी । गौरपूर्ण है कि वर्तमान में नेपाल एक साम्यवादी नेतृत्व के गठबंधन द्वारा प्रशासित है।
भारत को क्या करना चाहिए?
चीन के विपरीत, भारत की उपनिवेशवादी प्रतिष्ठा नहीं है। जब अफगानिस्तान के लिए एक नया संसद भवन बनाया गया था, तो इसमें कोई निबंधन संलग्न नहीं था। मूल रूप से 45 मिलियन डॉलर की लागत रखनेवाली इस इमारत को 2007 में एक युद्ध-ध्वस्त अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए दोस्ती और सहयोग के निशान के रूप में कमीशन किया गया। 2 अरब डॉलर के सौदे की तरह भारत ने रेल इंजनों की आपूर्ति के लिए ईरान के साथ सौदा किया, और आगे चलकर रेल-पटरियां इत्यादि का भी काम किया। भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ सक्रिय रूप से मेल-जोल बढ़ाना चाहिए। इसे चीन से अपनी क्रियशैली अलग रखनी चाहिए और सहयोगी दलों के साथ मिलकर काम करना चाहिए । प्रतिभाशाली जनशक्ति के श्रोत के रूप में भारत का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है, जो देश की परवाह किए बिना अमान्यता रखता है। मोदी ने नए रिश्ते बनाने में राजनयिक रूप से उत्कृष्टता हासिल की है, जो अक्सर व्यक्तिगत आकर्षण और चुंबकत्व से भी प्रभावित रहती है। अकेले इस कारण के लिए, वह एक दूसरे शासनकाल के हकदार हैं।
Note:
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