कठुआ बलात्कार मामला तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया और राजनेताओं के हाथों बलि चढ़ गया

नीचे मामले के बारे में कुछ तथ्य हैं जो मीडिया द्वारा प्रकट नहीं किए गए थे।

कठुआ बलात्कार मामला तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया और राजनेताओं के हाथों बलि चढ़ गया
कठुआ बलात्कार मामला तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया और राजनेताओं के हाथों बलि चढ़ गया

भारत में दिसम्बर 2012 से 36 हज़ार बलात्कार कांड हुए हैं। परंतु सेक्युलर मीडिया अपना केस सिर्फ प्रचार प्रसार के दृष्टिकोण से चुनती है!

कठुआ बलात्कार कांड एक दिल देहला देनेवाली एवँ क्रूर वारदात है जिससे इंसान होने पर शर्मिंदगी मेहसूस होती है। एक 8 वर्षीय लड़की 10 जनवरी 2018 को घोड़े चराने पास के जंगल में गयी और लौटी ही नहीं। उसके पिता ने 12 जनवरी को बच्ची के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई। एफआईआर (यदि कुछ छेड़-छाड़ ना की गयी हो तो) को पढ़ते ही आपका खून खौल उठेगा और बलात्कारी का कत्ल करने का मन करेगा। आरोपी को सज़ा होनी चाहिए और लड़की के परिवार को न्याय मिलना चाहिए।

यह घटना जनवरी में हुई परंतु मीडिया मार्च में जागृत हुई। आश्चर्यजनक बात यह है कि तथाकथित सेक्युलर पत्रकारों और लोगों ने पूरे हिंदू समुदाय को दोषी ठहराया और उन्हें ‘राष्ट्रवादी’ घोषित किया। उनके कथन के अनुसार वे लोग हाथ में तिरंगा लिए ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे इसलिए वे राष्ट्रवादी हैं और पूरा हिंदू समुदाय इस घटना के लिए जिम्मेदार है। पीड़ाग्रस्त के धर्म का खुलासा करने में वह ज़रा भी सकुचाये नहीं।

अन्य घटनाओं में जिनमें पीड़ित बहुसंख्यक और आरोपी अल्पसंख्यक होते हैं, मीडिया के हाव भाव बदल जाते हैं और इनकी पत्रकारिता इन्हें पीड़ित की चिंता और याद नहीं दिलाती। कठुआ बलात्कार कांड में इन्होंने कहा “कठुआ कांड के षड्यंत्रकारी करोड़ो हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं”। मात्र घटना से जुड़े 8 लोग करोड़ो हिन्दूओं का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकते हैं? क्या इस घटना को साम्प्रदायिकता प्रधान कर आग में घी डालने का प्रयास है?

अप्रैल में दो ज्यादा जघन्य और घिनौने बलात्कार कांड हुए पर फर्क सिर्फ इतना था कि यहाँ आरोपी मुसलमान थे, इसलिए सेक्युलर मीडिया ने चुप्पी साधी!

इनकी सोच को मैं व्यंग्यात्मक रूप से संक्षिप्त में प्रस्तुत करता हूँ :

“कुछ हिंदू हाथ में तिरंगा लिए आरोपियों का समर्थन कर रहे हैं, पूरा हिंदू समुदाय विश्व शांति के लिए खतरा हैं!

आईएसआईएस का झंडा लिए पत्थरबाज भारतीय सेना के आतंक विरोधी कार्यवाही में अड़चन पैदा कर रहे हैं, फिर भी इस्लाम विश्व शांति का प्रतीक है”!

इनका षणयंत्र यहाँ खत्म नहीं होता। इन्होंने घटना से जुड़े तथ्यों का खुलासा नहीं किया। इनके फर्जी दावों का प्रतिउत्तर देता हूँ:

* जम्मू के वकीलों का कहना है कि बार एसोसिएशन बलात्कारियों का समर्थन कर रही थी। परंतु वकीलों ने इस मीडिया रिपोर्ट को गलत बताते हुए अपनी तरफ से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस द्वारा इस मामले के बारे में सफाई दी।

* उन्होंने कहा कि उन्होंने आरोपियों का समर्थन नहीं किया बल्कि सीबीआई जांच की मांग की और कहा कि श्रीनगर अपराध विभाग को यह केस न सौंपा जाए। इसका कारण यह है कि जांच कर रहे अधिकारी, इफ्तिखार वानी, स्वयं एक लड़के के कस्टडी में हत्या के आरोपी हैं और उन्होंने उसकी बहन का बलात्कार करने के लिए एक साल सज़ा भी काटी थी। सेक्युलर मीडिया ने इस बात का खुलासा क्यों नहीं किया? जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बी. एस. सालाथीया का इंटरव्यू पढ़ें! उन्होंने अपनी तरफ से स्पष्टीकरण देते हुए सेक्युलर मीडिया पर घटना को सांप्रदायिक बनाने एवँ तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने के लिए दोषी ठहराया।

* बालिका के पिता ने बताया कि गाँव का हिंदू समुदाय उपकारी है और वह सब मिलजुलकर रहते हैं।

* श्रीनगर अपराध विभाग के भय से पूरा गाँव कठुआ के कूतह इलाके में चला गया। उन्होंने बताया कि उन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा था और अपनी सुरक्षा के लिए उन्हें गांव छोड़कर जाना पड़ रहा है। सरपंच ने बताया कि वह आरोपियों का समर्थन नहीं कर रहे हैं बल्कि सीबीआई की जांच मांग रहे हैं ताकि सही एवं न्यायपूर्ण तरीके से जांच की जाए।

*तथाकथित आरोपी, संजी राम ने विशाल को दूसरे राज्य (उत्तर प्रदेश) से बलात्कार करने के लिए बुलाया। जब दूसरे राज्य में स्थित विशाल के विद्यालय में मीडिया समाचार प्रेषण करने पहुंची तब उन्हें पता चला कि विशाल उस दौरान परीक्षा लिख रहा था (कॉलेज के प्रोफेसर व उपस्थिति पत्र में इसकी पुष्टि हुई है)। एक व्यक्ति एक ही समय में दो स्थानों पर कैसे उपस्थित हो सकता है? एक और आश्चर्यजनक बात यह है : शायद संजी राम ने कॉलेज के शिक्षकों को घूस दी होगी? इस बात को साबित नहीं किया गया। फिर भी मीडिया ने विशाल को बलात्कारी घोषित कर दिया। वो बलात्कारी है या नहीं ये साबित होने से पहले ही उसे दोषी करार दिया। वो निर्दोष भी हो सकता है!

*घटना मंदिर में हुई और पीड़ित को 7 दिनों तक वहाँ बन्दी बनाकर रखा गया। रिपोर्ट के मुताबिक मंदिर में 4 खिड़कियां और 3 प्रवेश द्वार हैं। 3 गावों से लोग दिन में दो बार दर्शन के लिए आते हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसी जगह पर किसी को एक हफ्ते तक कैसे बंधी बनाकर रखा जा सकता है? परंतु सेक्युलर मीडिया ने धार्मिक बनाते हुए हिंदू धार्मिक स्थल को दोषी ठहराया!

* 15 जनवरी को मंदिर में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया गया, तब कई सारे लोग वहाँ एकत्रित हुए, क्या फिर भी किसी को पता नहीं चला कि एक लड़की को वहाँ बन्दी बनाया गया है? क्या यह मुमकिन है? हाँ, तब ही मुमकिन है जब कोई इसे धार्मिक रँग देना चाहे और इसी हेतु मनगढ़ंत कहानी बनाए! कृपया दिए गए विडियो देखें:

*एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दिसम्बर 2012 से 36 हज़ार बलात्कार कांड हुए हैं। परंतु सेक्युलर मीडिया अपना केस सिर्फ प्रचार प्रसार के दृष्टिकोण से चुनती है! अप्रैल में दो ज्यादा जघन्य और घिनौने बलात्कार कांड हुए पर फर्क सिर्फ इतना था कि यहाँ आरोपी मुसलमान थे, इसलिए सेक्युलर मीडिया ने चुप्पी साधी! क्योंकि ये उनके एजेंडा के अनुकूल नहीं था?

उनके लेख एवँ समाचारों के विषय में प्राथमिकताओं से बहुत सवाल उठते हैं विचार और मान्यताओं को लेकर!

दो भाजपा राज्य मंत्री (लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा) जिन्होंने आरोपियों का समर्थन किया था, ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। परंतु पार्टी की छवि राज्य में बिगड़ चुकी थी। भाजपा कठुआ बलात्कार कांड को सही तरीके से संभालने में असमर्थ रही है। भाजपा महिला मंत्रियों की चुप्पी इस बात को दर्शाती है कि वे इस कांड को एवँ महिला सुरक्षा को लेकर कितने चिंतित हैं! दुखद बात यह है: महिला अधिकारों के लिए 2012 में लड़नेवाले नेता अभी चुप्पी साधे हुए हैं और 2012 में जो चुप थे वह अब महिला अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।

कभी कभी ये पत्रकार उनकी पक्षपात पूर्ण नीति की वजह से भारत के लिए शर्मिंदगी का पात्र बन जाते हैं! उनके लेख एवँ समाचारों के विषय में प्राथमिकताओं से बहुत सवाल उठते हैं विचार और मान्यताओं को लेकर! ये विचार और मान्यताएं भारत को पृथकतावाद और नैतिक सापेक्षवाद की ओर ले जा रहे हैं! ऐसी पत्रकारिता से भारतियों को सही गलत की पहचान करने में दिक्कत होती है। ऐसा प्रचार प्रसार भारत जैसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक विविधतापूर्ण देश में कष्ट देनेवाला है।

Note:
1. Text in Blue points to additional data on the topic.
2. The views expressed here are those of the author and do not necessarily represent or reflect the views of PGurus.

A software engineer by profession, who always writes code full of bugs. Trolling is the new mantra of my life. Neither derogatory nor inflammatory. I am trying my best to get serious about life & my success rate in achieving this feat is as same as getting an appraisal in the IT industry.
Sachin Padha

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