इस उल्लेख के पिछले भाग यहां पाए जा सकते हैं – भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४, और भाग ५ | यह भाग ६ है |
उज्बेकिस्तान का बाबर
महान कपिलेन्द्रदेव के नेतृत्व में, ओडिशा का केगजपति वंश विजयनगर के साम्राज्य से भी आगे निकल गया | उन्होंने जौनपुर की सल्तनत और गुलबर्गा में बहमनी राजवंशको भी हराया | इसके बाद में उन्होंने बीदर के लगातार अभियानों में बहमनियों को भी कुचल दिया |
मेवाड़ के सिसोदिया वंश का संघर्ष, जो महाराणा हम्मीर के प्रयासों से शुरू हुआ था, महान महाराणा कुंभ द्वारा जारी रहा |महाराणा कुंभ ने नागौर की सल्तनत पर कब्जा कर लिया | महाराणा कुंभ ने गुजरात और की सल्तनतों को भी हराया| इन विजयों को मनाने के लिए उन्होंने प्रसिद्ध विजय स्तम्भ का निर्माण किया |
मेवाड़ के महाराणा सांगा ने मालवा, गुजरात और दिल्ली के सुल्तानों को भी हराया | ढ़ोलपुर और खातौली की लड़ाई में सुल्तान इब्राहिम लोदी को पराजित करने के बाद, उनका साम्राज्य दिल्ली की सीमाओं तक पहुंच गया | इन युद्धों के बाद, राणा सांगा उत्तर भारत में सबसे शक्तिशाली राजा बन गए |
बाबर ने महाराजा कृष्णदेवराय को उस समय हिंदुस्तान के सबसे बड़े राजा के रूप में वर्णित किया था|
राणा सांगा, इब्राहिम लोदी को हटाने के लिए और खुद को दिल्ली के शासक घोषित करने के लिए दिल्लीजाने के लिए पूरी तरह तैयार थेकि तभी कहानी में एक मोड़ आया |
बाबर, तुर्की-मंगोल आक्रमणकर्ता तैमूर लंग (तैमूर लंगड़ा था) का उज्बेकी वंशज था| तैमूर ने एक शताब्दी पहले दिल्ली पर आक्रमण किया और उसे नष्ट किया था | बाबरने एक बड़ी सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया और उत्तर-पश्चिम के बड़े हिस्सों पर सापेक्ष आसानी से विजय प्राप्त की | अपने पूर्वज तैमूर के विपरीत, जो केवल भारत के धन को लूटना चाहता था,बाबर भारत में रहने की योजना से आया था |
बाबर को दिल्ली सल्तनत के इस्लामी रईसों द्वारा भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया गया था | इस्लामी रईस लोदी राजवंश के शासन से असंतुष्ट थे | मुगलों का लोदियों की सल्तनत सेनाओं के साथ युद्ध हुआ जिसमे इब्राहिम लोदी मारा गया | इसके पश्चात् राणा सांगाने बाबर को हिंदुस्तान के सिंहासन के लिए चुनौती देने का फैसला किया |
महाराणा सांगा बयाना की लड़ाई में बाबर को पराजित करने में कामयाब रहे | बाद में महाराणा सांगा ने बाबर से लड़ने के लिए राजपूतों और अफगानों से मिलकर एक शक्तिशाली संघ बनाया | परन्तु वह खानवा की लड़ाई में मुख्य रूप से अपने ही रिश्तेदार सिल्हारी के विश्वासघात की वजह से हार गए;सिल्हारीअंतिम क्षण में लगभग तीस हज़ार सैनिकों के साथ मुगलों के खेमे में शामिल हो गया था | मुगलों ने खानवा में मारे गए राजपूतों की खोपड़ी के मीनार बनाए | इस जीत के बाद बाबर उत्तर भारत का अविवादित मालिक बन गया |
“इस्लाम के लिए, मैंजंगल में भटकता रहा,
काफिरों और हिंदुओं के साथ युद्ध के लिए तैयारी की,
शहीदों जैसी मृत्यु के लिए संकल्प लिया,
अल्लाह को धन्यवाद! मैं एक ग़ाज़ी बन गया, ” बाबर ने अपने संस्मरण में लिखा (बाबरनामा) |
जब बाबर भारत में बसने लगा था , महाराजा कृष्णदेवराय विजयनगर पर शासन कर रहे थे | उन्हें बाबर ने उस समय हिंदुस्तान के सबसे बड़े राजा के रूप में वर्णित किया था|कृष्णदेवराय एक महान सैन्य नेता होने के अलावा हिंदू धर्म के एक महान संरक्षक भी थे| उन्होंने बहमनी सल्तनत की शक्ति का विनाश किया था | कृष्णदेवराय की सबसे प्रसिद्ध सैन्य जीत रायचूर के प्रसिद्ध युद्ध के रूप में आई, जहाँ उन्होंने बीजापुर के सल्तनतका नाश किया |
कवि तिम्मन्ना ने महान कृष्णदेवराय के बारे में यह कहा था : ” हे कृष्णराया, आप मनुष्य रूप में सिंह हैं !! आपने तुर्कों को अपने महान नाम की शक्ति मात्र से नष्ट कर दिया | हे हाथियों के भगवान, आप को देखने से ही हाथियों की भीड़ भय से भाग जाती है |”
१५६५ में, तालकोटा में, दक्कन सल्तनत की संयुक्त सेनाओं के हाथों विजयनगर साम्राज्य को एक संकटपूर्ण हार का सामना करना पड़ा | इस युद्ध के बाद, विजयनगर शहर को उसके सभी मंदिरों, पुस्तकालयों, घरों आदि के साथ जला दिया गया | जीती जा रही लड़ाईनेअचानक से एकमोड़लियाजब अलीया राम राय के कुछ मुस्लिम अंगरक्षकों ने धोखा दिया और उनको बंदी बना लिया | राम राय को इस्लाम स्वीकारने का विकल्प दिया गया था, लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया और इसके बजाए “नारायण कृष्ण भगवंत “का गुणगान करने लगे, जिसके बाद उनका सर कलम कर दिया गया |
वेंकटपति देव राय ने दक्षिण में धर्म की रक्षा करने के लिए एक बहादुर लड़ाई लड़ी और साम्राज्य के अंत को कुछ समय तक रोकने में सक्षम रहे |
तालकोटा की लड़ाई के पश्चात् दक्षिण भारत में सनातन धर्म का शासन लगभग समाप्त हो गया | परन्तु कुछ दशकों बाद, वेंकटपति देव राय, जो विजयनगर के शासक बने, ने गोलकोंडा और बीजापुर के सल्तनत के आक्रमणों का सफलतापूर्वक विरोध किया | पेनुकोंडा की नई राजधानी से (पुरानी राजधानीपूरी तरह से नष्ट हो गई थी और मरम्मत नहीं की जा सकती थी), वेंकटपति देव राय ने पूरी तरह से इसशक्तिशाली साम्राज्य की किस्मत को बदल डाला और दक्षिणी सल्तनत के सामने झुकने से इनकार कर दिया | उनकी मृत्यु के बाद विजयनगर साम्राज्य औपचारिक रूप से समाप्त हो गया, हालांकि तालकोटा में आपदा के बाद ही यह शक्ति कम हो गई थी | हालांकि, वेंकटपति देव राय ने दक्षिण में धर्म की रक्षा करने के लिए एक बहादुर लड़ाई लड़ी और साम्राज्य के अंत को कुछ समय तक रोकने में सक्षम रहे |
मालदेव राठौड़ की प्रशंसा फ़रिश्ता (एक फ़ारसी इतिहासकार जो भारत आया था) ने की थी, जो उन्हें हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राजा बताता था | मालदेव राठौड़ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी लेकिन शेर शाह सूरी से सामेल के प्रसिद्ध युद्ध में हार गए | परन्तु उन्होंने लगभग एक साल में सूरी से खो जाने वालेसारेप्रदेशों को हासिल कर लिया |
. . . आगे जारी किया जाएगा
- Real Indian History – Part 14 - February 19, 2018
- Real Indian History – Part 13 - February 15, 2018
- Real Indian History – Part 12 - February 12, 2018